हरिद्वार। हरिद्वार विधानसभा सीट उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण सीट है। हरिद्वार देश का प्रख्यात तीर्थस्थल है। हरिद्वार के लोग इस बार किसके पक्ष में मतदान होगा इस पर भी प्रदेश की नजर है। इस बार भी हरिद्वार में मुख्य मुकाबला भाजपा कांग्रेस के ही बीच है। यहां से प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष का मुकाबला कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी से है।
कुंभ घोटाला हो या फिर लाइब्रेरी घोटाला दोनों इन चुनावों में मुद्दा बनते नजर आ रहे हैं। इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। हरिद्वार में बढती बेरोजगारी और कोरोनाकाल में हुए नुकसान के बाद यहां ब्यापारियों को हुए भारी नुकसान को भी लोग मुद्दा बनाते दिख रहे हैं।
हरिद्वार शहर की सीट पर राज्य बनने के बाद हुए चुनाव साल 2002 के पहले ही चुनाव से भाजपा का ही कब्जा रहा है। बीस सालों से यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा है। अविभाजित यूपी में आखिरी बार हरिद्वार में कांग्रेस 1984 में जीती थी। उसके बाद से कांग्रेस को यहाँ से जीत नहीं मिली।
इस बार कांग्रेस ने पूर्व पालिकाध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी को कांग्रेस ने भाजपा के अध्यक्ष के सामने चुनावी रण में उतारा है। कांग्रेस ने इस बार भले दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारा हो, लेकिन इससे भी कांग्रेस का एक धड़ा खफा है, जो एक बार फिर हरिद्वार में कांग्रेस के लिए चूक साबित हो सकती है।
दूसरी तरफ इस बार बीजेपी की बात करें तो इस बार जीत की राह बीजेपी के लिए भी आसान नहीं रह गई है। अब तक के राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में मदन कौशिक को बीजेपी नेताओं व कार्यकर्ताओं ने एक तरफा समर्थन कर जीत दिलाई, लेकिन तीन साल पहले हरिद्वार नगर निगम चुनाव में हरिद्वार नगर निगम चुनाव में बीजेपी का मेयर प्रत्याशी बनाने के बाद भी भाजपा प्रत्याशी अन्नू कक्कड़ मेयर का चुनाव हार गई थीं। इसके बाद मदन कौशिक का भी विरोध शुरू हो गया था।
इसके बाद उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 आते-आते हरिद्वार सीट पर आशुतोष शर्मा, पूर्व मेयर मनोज गर्ग, पूर्व पार्षद कन्हैया खेवड़िया ने कौशिक के खिलाफ ताल ठोक दी थी।
हरिद्वार सीट में 1,42,469 मतदाता हैं, जिसमें 78,144 पुरुष और 64,348 महिलायें हैं।
जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा कुल मतदाताओं के 35 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। जबकि दूसरे स्थान पर पंजाबी समुदाय के मतदाताओं की आबादी 20 फ़ीसदी है।ठाकुर 15 फ़ीसदी हैं, जबकि वैश्य समुदाय की आबादी 10 फीसदी है। अब तक भाजपा को मिली जीत का विश्लेषण करें तो उसमे उनका ब्राह्मण होना और पार्टी को बनियों का एकतरफा समर्थन होना इसमे एक भूमिका निभाती आ रही है।
पहली बार जब बीजेपी से मदन कौशिक को टिकट मिला था तो उस समय कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता पारस कुमार जैन को मैदान में उतारा था, लेकिन उस समय कांग्रेस से बगावत कर विकास चौधरी बसपा के हाथी पर सवार हो गए। जिसके कारण कांग्रेस के समीकरण ऐसे बदले कि फिर बीजेपी ने जिले में लगातार जीत दर्ज की।
दूसरे चुनाव में साल 2007 में हुए चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी मदन कौशिक ने अपने प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के अम्बरीश कुमार को 28,640 वोटों से पराजित करके लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की थी।इसके बाद लगातार भाजपा कांग्रेस की ही टक्कर होती रही। इसके जवाब में भाजपा अब ध्रुवीकरण की चाल चलती दिख रही है। इसके लिए भाजपा एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने के मुद्दे को कांग्रेस पर थोप रही है।
भाजपा एक ऐसा पत्र भी निकाल लाई है जिसमे जुमे की नमाज के लिए अल्पावकाश देने की बात कही गई है। जबकि कांग्रेस इस मामले में अपनी सफाई देते रह गई। भाजपा ने इसे पूरे प्रदेश में फैला डाला। इससे भी यही साबित होता है कि भाजपा को स्थितियां प्रतिकूल दिखाई दे रही हैं। स्वयं पीएम मोदी ने तक अपने सोमवार को हरिद्वार की वर्चुअल रैली में इसको प्रमुख रूप से हाई लाइट किया।