कई बार बहुत परिश्रम करने के बाद भी उन्नति नहीं होती आखिर क्यों? ऐसी समस्याएँ कई जातकों की पत्रिका में देखने को मिल जाती हैं। वो कौन से ग्रह होते हैं, जो प्रगति की राह में बाधक बन जाते हैं। आसान दिखने वाली राहों पर पहाड़ खड़े हो जाते हैं। अच्छा-भला जीवन कष्टमय बन जाता है। यहाँ पर कुछ अनुभूत योग दिए गए हैं, जिन्हें मैंने अनेक जन्म कुंडलियों में पाया।
शनि अत्यंत प्रभावशाली ग्रह हैं एवं इसका शुभ या अशुभ परिणाम शीघ्र देखने को मिलता है। मंगल भी अत्यंत प्रभावशाली ग्रह है एवं युद्ध तथा विस्फोट का कारक भी है। चंद्रमा मन का कारक है क्योंकि पूर्णिमा व अमावस्या के दिन समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब इतने बड़े विशाल समुद्र को यह झकझोर कर देता है तो हमारे मन को क्यों नहीं झकझोर कर सकता है। आखिर हमारे शरीर में भी तो जल तत्व अधिक होता है।
शनि-मंगल का योग विस्फोट योग का निर्माण करता है। उसी प्रकार शनि-चंद्रमा के योग को विष योग कहा जाता है। विवाह करते समय यदि इन योगो को नजरअंदाज कर दिया जाए तो उनका जीवन कष्टमय हो जाएगा और जीवन में उन्नति नहीं होगी। इस प्रकार जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है, उसके सामने कठिनाइयों का पहाड़ टूट पड़ता है।
शनि की तृतीय तथा सप्तम दृष्टि मानी जाती है यदि शनि द्वारा मंगल देखा जाता है या मंगल की चतुर्थ दृष्टि, सप्तम दृष्टि व अष्टम दृष्टि से शनि दृष्टिपात करता हो तो विस्फोट योग बनता है। ऐसी स्थिति वाला जातक जीवन में भारी कष्टों का सामना करते हुए दिन बिताता है। यह योग जिस भाव से बनेगा, उस भाव को नष्ट करेगा। कहीं-कहीं यह योग लाभकारी भी बन जाता है जैसे शनि या मंगल यदि षष्ठ भाव में होगा तो शत्रुओं का नाश करेगा लेकिन मामा के लिए दुखदायी होगा एवं स्वयं को पैरों में तकलीफ का कारण भी बनेगा।
शनि-चंद्रमा की युति नवम भाव में जातक को वैराग्य दिला देती है और ऐसा जातक विवाह से वंचित हो जाता है या किसी कारणवश विवाह हो जाए तो ऐसा दांपत्य जीवन नष्ट हो जाता है पति या पत्नी में से कोई एक संन्यास ले लेता है। शनि-मंगल की युति भाग्य को नष्ट कर देती है। ऐसा जातक भाग्यहीन होता है या उसे लाख प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं मिलती।
यदि शनि-मंगल या शनि-चंद्र की युति सप्तम भाव में हो या आपसी दृष्टि संबंध बनता हो तो निश्चित ही दांपत्य जीवन नरक बन जाता है। शनि-मंगल की युति यदि चतुर्थ या दशम भाव में बनती हो तो ऐसा जातक माता सुख से, परिवार से, जनता के बीच आदि कार्यों से हानि पाता है, उसी प्रकार दशम भाव में बनने वाला योग पिता से, राज्य से, नौकरी से, व्यापार से, राजनीति से आदि मामलों से हानि पाता हैं।
ऐसा जातक नौकरी में भटकता रहता है, स्थानांतरण होते रहते हैं एवं अपने अधिकारियों से नहीं बनती। यदि शनि-मंगल की युति तृतीय भाव में हो तो भाइयों से नहीं बनती व मित्र भी दगा कर जाते हैं। साझेदारी में किए गए कार्यों में घाटा होता हैं। सूर्य-चंद्र की युति सदैव अमावस्या को ही होती है, इसे अमावस्या योग की संज्ञा दी गई है, यह योग भी जिसकी पत्रिका में जिस भाव में बनेगा, उस भाव को कमजोर कर देगा।
जन्म पत्रिका में कितने भी शुभ ग्रह हों और इन योगों में से कोई एक भी योग बनता है तो सभी शुभ प्रभावों को खत्म कर देता है। यदि उपरोक्त योग जहाँ बन रहे हैं, उन पर यदि शुभ ग्रह जैसे गुरु की दृष्टि हो तो कुछ अशुभ परिणाम कम कर देता है।
एक उदाहरण कुंडली से जानें कि उच्च का चंद्रमा एक युवती के लग्न में है अतः युवती सुंदर तथा गौर वर्ण तो है लेकिन इसका दांपत्य जीवन खराब है। सप्तमेश शुक्र द्वादश भाव में अग्नि तत्व की राशि मेष में बैठा है अतः दांपत्य जीवन खराब है एवं शनि की दसवीं दृष्टि चंद्रमा पर पड़ रही है, जो विष योग बना रही है अतः इसका सारा जीवन दुख व अभावों में बीतेगा, वहीं इसकी पत्रिका में राहू व केतु मध्य सारे ग्रह होने से कालसर्प योग भी बन रहा है, जो कष्टों को और अधिक प्रभावित कर रहा है। लग्न पर शनि के अलावा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नहीं है। उदाहरण कुंडली से पता चलता है कि किस प्रकार विषयोग जीवन पर प्रभाव डालता है।
नोट- विषयोग चंद्र-शनि से बनता है। दांपत्य जीवन तब नष्ट होता है जब सप्तम भाव या सप्तमेश से युति दृष्टि संबंध हो। जैसे सप्तम भाव में धनु राशि हो और सप्तम भाव में शनि हो और लग्न में गुरु-चंद्र हो तब यह दोष लगेगा या शनि-चंद्र सप्तम भाव में हो तब दांपत्य जीवन को प्रभावित करेगा। इसी प्रकार विस्फोटक योग शनि-मंगल से बनता है। यदि शनि-मंगल की युति सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो व मंगल की दृष्टि पड़ती हो तो या शनि सप्तम भाव में बैठे मंगल पर दृष्टिपात करता हो या सप्तमेश शनि-मंगल से पीड़ित हो तो दांपत्य जीवन नष्ट होता है अन्यत्र हो तो दांपत्य जीवन नष्ट नहीं होता।