गुरु से बनने वाले मुख्य राजयोग

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- श्री मत ी मृदुला दिशोरिया

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देवताओं के गुरु बृहस्पति माने जाते हैं। यह जन्म कुण्डली में विभिन्न भावों में, विभिन्न ग्रहों के साथ या दृष्ट हो तो कई महत्वपूर्ण राजयोग का निर्माण करता है एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के राजयोग बनते हैं। यहाँ पर गुरु से बनने वाले मुख्य राजयोग दिए जा रहे हैं।

* मेष लग्न में स्वराशिस्थ मंगल व गुरु हो तो वह जातक विदेश या गृहमंत्री बनता है या जिले का प्रमुख होता है।
* मेष का मंगल लग्न में तथा सुख भाव में गुरु हो तो वह जातक भी उच्च प्रशासनिक सेवा में उच्च पदाधिकारी बनता है।
* मेष लग्न में भाग्येश गुरु हो व चतुर्थेश चतुर्थ में हो व दशम भाव में शुक्र हो तो वह जातक शासन में मंत्री होता है।
* उच्च राशि का गुरु केंद्र में हो व दशम भाव में शुक्र हो तो वह जातक यशस्वी होकर शासनाधिकार होता है।
* कन्या लग्न हो और उसमें बुध हो, एकादश भाव में गुरु हो एवं चंद्र भी हो और पंचम भाव में मंगल हो तो वह जातक मंत्री या उच्चाधिकारी बनता है।
* गुरु या शुक्र उच्चस्थ होकर केंद्र में हो या त्रिकोण में हो तो वह जातक धनी, पराक्रमी व शासनाधिकारी होता है।
* गुरु बुध के द्वारा दृष्ट हो यानी समसप्तक हो तो वह जातक महाधनी होकर उच्च पद पर होता है।
* किसी की भी जन्म पत्रिका में गुरु व शनि के मध्य सारे ग्रह हों तो वह जातक अतुलनीय धन पाता है एवं वाहनादि से युक्त उत्तम भवन में रहने वाला होता है।
* गुरु पराक्रम भाव में (तृतीय) व शुक्र अष्टम भाव में हो तो वह जातक पराक्रमी होकर राजसुख पाने वाला भी होता है।
* गुरु तृतीय भाव में व चंद्रमा एकादश भाव में हो तो वह जातक भूमिवान, संपत्तिवान होता है।
* गुरु ज्ञान का कारक है व चंद्र मन का, यदि गुरु पंचम भाव में हो व चंद्रमा दशम भाव में हो तो वह जातक अत्यंत बुद्धिमान, यशस्वी, मन को वश में रखने वाला होकर राजसुख पाने वाला होता है।
* गुरु कर्क में तथा चंद्रमा वृषभ में हो तो वह जातक प्रोफेसर या प्रिंसीपल या शिक्षामंत्री होता है।
* तुला राशि में शनि चंद्र हो व सूर्य उच्च का हो एवं गुरु भी उच्च राशि का हो तो वह जातक महान होकर धनी भी होता है। उच्च शासनाधिकारी भी होता है।
* उच्च के चंद्रमा या कर्क के चंद्रमा के साथ बुध हो तो ऐसा जातक बुद्धिमान और गुरु से दृष्ट हो तो जज भी होता है।
* द्वितीय भाव में शुक्र, दशम भाव में गुरु व षष्ठ भाव में राहू हो तो ऐसा जातक पराक्रमी शत्रुहंता होकर कुशल प्रशासनिक अधिकारी या मंत्री होता है।
* लग्न में पापाक्रांत ग्रह हो व कहीं से भी उच्च के गुरु की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसा जातक यशस्वी, धनी, राजतुल्य भोगों को भोगने वाला होता है।
* नवम भाव में गुरु के साथ तीन या चार ग्रह हों तो वह जातक राजनीति के क्षेत्र में पूर्ण सफलता पाने वाला होता है।
* केंद्रस्थ गुरु व नवम भाव में शुक्र स्थित हो तो राजनीति में सफलता प्रदान करने वाला होता है।
* वृषभ के चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि कहीं से भी हो तो वह जातक उच्च पदाधिकारी, शासनाधिकारी या राजनीति में उच्चतम सफलता दिलाता है।
* चंद्रमा के साथ सूर्य-शुक्र हो व गुरु से दृष्ट हो तो समाज में प्रसिद्ध व सर्वत्र सम्मान पाने वाला गाँवों का मुखिया होता है।

उपरोक्त में से कोई भी एक योग किसी भी जातक की जन्म पत्रिका में हो तो वह जातक निश्चित ही उस योग के अनुरूप फल पाता है। इस प्रकार आप भी अपनी पत्रिका में योग देखकर लाभ पा सकते हैं। उत्तम योग व योग रखने वाला व्यक्ति यदि कर्म करना छोड़ दे व भाग्य भरोसे रहे तो उसे लाभ नहीं मिलता। प्रयास करके ही सफलता पाई जाती है।

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