तिथिनुसार श्राद्ध करने का महत्व

धार्मिक कर्म हैं श्राद्ध

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ब्रह्मपुराण में आश्विन मास के प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक श्राद्ध करने के अलग-अलग फल बताए गए हैं। पितृ पक्ष की महत्ता के बारे में पं. केदार महाराज कहते हैं कि इन तिथियों में ही लोग अपने पितृ की तिथि के अनुरूप उनकी श्राद्घ और तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष पितरों के प्रति श्रद्धा के लिए जाना ही जाता है।

तर्पण के लिए लोग कुशा, चावल और उड़द दाल का प्रयोग करते हैं। पितृ पक्ष को लेकर ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में परिवार के लोगों से पितृगण अपेक्षा रखते हैं और उनसे मिलने आते हैं। श्रद्धा से पूजा और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

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पं. मनोज शुक्ला कहते हैं कि पूर्णिमा से अमावस्या तक पितृ का तर्पण और श्राद्घ किया जाता है। पुराण कहते हैं कि धर्म का आधार श्रद्धा है। श्राद्ध भी श्रद्धा प्रगट करने का एक धार्मिक कर्म है। श्राद्ध पर्व में हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

पखवाड़े में हर वर्ग के लिए अलग तिथि होती है। पूर्णिमा को कुछ लोग ही मनाते हैं। उस तिथि को वे मानते हैं, जिनके पितृ की मृत्यु इस तिथि को हुई होती है।

पितृ पक्ष प्रतिपदा से ही शुरू होता है। इस बार यह 16 दिनों तक रहेगा। उसमें लोग तिथिगत मान्यता के अनुसार पितृ को तर्पण करते हैं। पितृ को लगाया जाने वाला भोग कांक बली, श्वान बली और पिपलादी (चींटियों) को दिया जाना श्रेष्ठकर माना जाता है।

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