Raksha Bandhan
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तिथि व नक्षत्र के आगे-पीछे होने से बन रही स्थिति -
मत-मतांतर के चलते 20 और 21 को मनाया जाएगा त्योहा र रक्षाबंधन का पर्व वर्ष 2013 में दो दिन आ रहा है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार 20 और 21 अगस्त को मनाया जाएगा। यह स्थिति 40 साल बाद बन रही है। इससे पहले 13 व 14 अगस्त 1973 को ऐसा संयोग बना था। तिथि व ग्रह-नक्षत्रों के आगे-पीछे होने से ऐसे संयोग बनते हैं।
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आचार्य पं. धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार, पहले दिन 10 घंटे भद्रा रहने से सूर्य अस्त होने के बाद, जबकि दूसरे दिन उदया तिथि में पूर्णिमा होने से पूरे दिन शुभ मुहूर्त में राखी बांधी जा सकेगी। 20 अगस्त को सुबह से रात 8.30 बजे तक भद्रा रहेगी। उसके बाद राखी बांधी जा सकेगी। 21 अगस्त को उदया तिथि पूर्णिमा होने से रक्षाबंधन होगा एवं ब्राह्मण लोग जनेऊ बदलेंगे।
* पं. ओम वशिष्ठ के अनुसार 20 अगस्त को सुबह 9.36 बजे चौदस समाप्त होकर श्रावण पूर्णिमा शुरू हो जाएगी, जो अगले दिन 21 अगस्त को सुबह 7.20 तक रहेगी। इधर श्रावण नक्षत्र 19 अगस्त को दोपहर 3.40 से शुरू होकर 20 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 11 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।
पं. अशोक पंवार मयं क के अनुसार- रक्षाबंधन के संबंध में कई भ्रांतियां चल रही है। कई ज्योतिष व पंचागकर्ता कहते हैं कि रक्षाबंधन 21 को होगा। 21 तारीख को तीन मुहूर्ती पूर्णिमा के न होने से शास्त्रोक्त नियमानुसार रक्षाबंधन नहीं माना जाना चाहिए। नियम तो श्रावण पूर्णिमा में ही है। जबकि 21 तारीख को कृष्ण पक्ष भाद्रपद लग जाता है तो अब बताएं भाद्रपद कृष्ण पक्ष में कैसे बंधेगा रक्षाबंधन का सूत्र।
रक्षाबंधन अपरान्ह व्यापिनी श्रावण पूर्णिमा में मनाया जाता है। भद्रा में यह निषिद्ध हैं। जब पहले दिन अपरान्ह में भद्रा हो, दूसरे दिन पूर्णिमा मुहूर्तत्रयव्यापिनी हो तो भले ही वह अपरान्ह से पूर्व ही समाप्त हो जाए तब भी दूसरे दिन अपरान्ह में रक्षाबंधन मानना चाहिए क्योंकि, उस समय साकल्यापादित पूर्णिमा का अस्तित्व होगा।
जब दूसरे दिन पूर्णिमा मुहूर्तत्रयव्यापिनी न हो तब अपरान्ह में साकल्यापादित पूर्णिमा भी नहीं होगी-ऐसी स्थिति में पहले दिन भद्रा समाप्त होने पर प्रदोष के उत्तरार्ध में रक्षाबंधन मानना चाहिए। इस वर्ष 20 अगस्त 2013 को अपरान्हव्यापिनी पूर्णिमा में भद्रादोष है और दूसरे दिन 21 अगस्त को यह पूर्णिमा त्रिमुहूर्त्तव्यापिनी नहीं है।
अतः पूर्वोक्त निर्णयानुसार इस वर्ष 20 अगस्त को ही प्रदोषकाल के बाद भद्रारहितकाल में अर्थात 8 बजकर 49 मिनट बाद रक्षाबंधन मनाना चाहिए। इस स्थिति में रक्षाबंधन निशीथ से पूर्व ही किया जाए-यही शास्त्रोक्त है।
पं. रामकृष्ण डी. तिवारी के अनुसार इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा 20 एवं 21 अगस्त दो दिन है। यह 20 अगस्त को दिन में 10.22 मिनट से प्रारंभ होकर 21 अगस्त को प्रात: 7.15 मिनट पर पूर्ण होगी।
दिनांक 21 अगस्त को पूर्णिमा तीन मुहूर्त से भी कम समय है अर्थात् इस दिन शास्त्रकारों के अनुसार तीन मुहूर्त से कम होने के कारण रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जा सकता। यह पर्व 20 अगस्त, मंगलवार को ही मनाना चाहिए।
यह भी स्पष्ट निर्देश है कि अपराह्न के समय जिस दिन पूर्णिमा हो उसी दिन यह पर्व मनाना चाहिए क्योंकि इस वर्ष यह 20 अगस्त को है।
भद्रा के परिहार में लिखा है कि विशेष कार्य या विशेष पर्व में भद्रा का मुख परित्याग करना चाहिए। शेष समय में कार्य करने में दोष नहीं है। 20 अगस्त को यह समय सायं 4.28 से सायंकाल 6.12 मिनट तक भद्रा का मुख रहेगा। अत: इस समय रक्षाबंधन का कार्य त्यागना चाहिए। शेष दिन में राखी मनाने में कोई दोष नहीं है।
सभी प्रमुख पंचांगकारों ने 20 अगस्त को यह पर्व मनाने का निर्धारण किया है।
जबकि उज्जैन के
पं. संतोष व्या स मानते हैं कि 20 को राखी मनाना वर्जित है और 21 अगस्त को सारे दिन शुभ मुहूर्त है। पूर्णिमा का दोष पं.व्यास नहीं मानते। उनके अनुसार 21 को शुभ और अमृत के चौघड़िया में राखी बांधना उचित है।
निर्णय सिंधु में बताया गया है कि यदि पूर्णिमा त्रि-मुहूर्त में अर्थात 144 मिनट से कम हो तो भद्रारहित चतुर्दशी तिथि में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।
कुछ अन्य सिद्धांतों के अनुसार जिस दिन सूर्योदय में श्रावण पूर्णिमा हो, उसी दिन राखी बांधना चाहिए। ऐसी स्थिति में दो दिन शुभ मुहूर्त में रक्षाबंधन का पर्व मना सकते हैं।
पं. श्यामजी बापू के अनुसार भद्रा के दौरान रहित राखी और होलिका दहन निषेध है। भद्रा के मुख-पूछ किसी भी काल में राखी नहीं बांधना चाहिए। भद्रा के आने के बावजूद इस बार 22 घंटे में शुभ मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकेगी। भद्रा के बाद 20 को रात 8.30 से 21 को सूर्य अस्त के समय 6.45 तक बहनें राखी बांध सकती हैं।