विशेष संयोगों के साथ आई सप्तमी

साधना से इच्छित फल की प्राप्ति का दिन

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चैत्र नवरात्रि में शुक्रवार को सप्तमी का पूजन होगा। बीते 6 दिनों से भक्त आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना में रमे हैं। मंदिरों में दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है। नवदुर्गाओं में सप्तमी कालरात्रि की मानी गई है।

ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला का अनुसार इस बार सप्तमी शुक्रवार को आर्द्रा नक्षत्र में शोभन योग के साथ आने के कारण विशेष महत्व रखती है। देवी पुराण के अनुसार शुक्रवार के दिन सप्तमी तिथि का योग बहुत कम बनता है। इस वर्ष यदि इस प्रकार का शुभ योग बना है तो साधक को अपने साधना के क्रम में सहस्त्रार चक्र की जागृति के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए।

महाकाली की साधना :- यह तिथि कमला सप्तमी के नाम से जानी जाती है। इस दृष्टि से आज मध्याह्न, अपराह्न, संध्या तथा रात्रि में महाकालिका की साधना इच्छित फल प्रदान करेगी।

कुलदेवी का पूजन : नवरात्रि में सप्तमी से नवमी तक घरों में अपनी कुल परंपरा अनुसार माता का पूजन होगा। इसमें समय व पूजन विधि की अपनी विशेषता है। सप्तमी पर महाकाली पूजन तथा अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में करने से भक्तों को मनोवंछित फल मिलेगा।

जिन भक्तों ने नवरात्रि पर्यंत साधना की है, वे (सप्तमी से नवमी) इन तीन तिथियों में से एक तिथि पर विधिपूर्वक हवनात्मक अनुष्ठान कर कन्या तथा बटुकों को यथा श्रद्घा भोजन, दक्षिणा तथा बीज वाला फल अर्पित करें। इन तीन तिथियों में व्रत व पूजन करने से नवरात्रि साधना का फल प्राप्त होता है।

महासप्तमी पर महाकाली स्त्रोत, काली कवच, काली अष्टक तथा मृत्युंजय कवच का पाठ करें। इस दिन आपके द्वारा की गई साधना से इच्छित फल की प्राप्ति होगी।

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