वैवाहिक जीवन पर मंगल का प्रभाव

भारती पंडित
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विवाह संबंधों में मंगल दोष प्रमुख व्यवधान होता है और कई बार अज्ञानतावश भी मंगल वाली कुंडली का हौआ बना दिया जाता है और जातक का विवाह हो ही नहीं पाता।

मंगल स्वभाव से तामसी और उग्र ग्रह है। यह जिस स्थान पर बैठता है उसका भी नाश करता है जिसे देखता है उसकी भी हानि करता है।

केवल मेष व वृश्चिक राशि (स्वग्रही) में होने पर यह हानि नहीं करता। जब कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में हो तो पत्रिका मांगलिक मानी जाती है।

* प्रथम स्थान का मंगल सातवीं दृष्टि से सप्तम को व चतुर्थ दृष्टि से चौथे घर को देखता है। इसकी तामसिक वृत्ति से वैवाहिक जीवन व घर दोनों प्रभावित होते हैं।

* चतुर्थ मंगल मानसिक संतुलन बिगाड़ता है, गृह सौख्‍य में बाधा पहुँचाता है, जीवन को संघर्षमय बनाता है। चौथी दृष्टि से यह सप्तम स्थान यानी वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है।

* सप्तम मंगल जीवनसाथी से मतभेद बनाता है व मतभेद कई बार तलाक तक पहुँच सकते हैं।

* अष्टम मंगल संतति सुख को प्रभावित करता है। जीवन साथी की आयु कम करता है।

* द्वादश मंगल विवाह व शैय्या सुख को नष्ट करता है। विवाह से नुकसान व शोक का कारक है।

कब नष्ट होता है यह दो ष :-

* मंगल गुरु की शुभ दृष्टि में हो -
* कर्क व सिंह लग्न में (मंगल राजयोगकारक ग्रह है।)
* उच्च राशि (मकर) में होने पर।
* स्व राशि का मंगल होने पर
* शुक्र, गुरु व चंद्र शुभ होने पर भी मंगल की दाहकता कम हो जाती है।
* पत्रिका मिलान करते समय यदि दूसरे जातक की कुंडली में इन्हीं स्थानों पर मंगल, शनि या राहु हो तो यह दोष कम हो जाता है।

विशेष : यह ध्यान रखना चाहिए कि मांगलिक पत्रिकाओं के मिलान के बाद भी जातक के स्वभाव की उग्रता कायम रहती है अत: वैचारिक मतभेद बने रहना स्वाभाविक है। ऐसे में शांति व सामंजस्य बनाए रखना दोनों (पति-पत्नी) के लिए अति आवश्यक होता है।

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