सर्वपितृ अमावस्या : पितरों की शांति के लिए अंतिम दिन करें यह प्रार्थना

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
ॐ पितृभ्य:स्वधायिभ्य: स्वधा नम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य:
स्वधा नम: प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्यं: स्वधा नम: ।
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृप्यन्त पितर: पितर:शुन्धध्वम् ॥


 
ध्यान, यज्ञ, पूजन, अनुष्ठान, जाप के द्वारा हम देवताओं को प्रसन्न करते हैं, इसी प्रकार तर्पण व नांदी श्राद्ध व ब्राह्मण भोजन कराके हम पितृदेव को प्रसन्न करते हैं। पितृपक्ष अमावस्या को किसी पवित्र नदी गंगा, जमुना, सरस्वती, रेवा, कावेरी, सरयू में स्नान करना चाहिए। संभव न हो तो किसी जलाशय या घर में पवित्र नदी का जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। 
 
घर को स्वच्छ करके गोबर का लेपन करके चंदन इत्यादि से पवित्र करने के बाद पितरों का फोटो पटिये पर रखकर दीपक लगाना चाहिए। पितृ का अष्टगंध अक्षर इत्यादि से पूजन करना चाहिए। 
 
थाली (परात) में दूध-पानी डालकर उसमें कुछ गुलाब की पंखुड़ियां डालना चाहिए, फिर पूर्वाभिमुखी होकर देवताओं व ऋषियों का तर्पण करना चाहिए। उत्तराभिमुख होकर दिव्य पुरुष का तर्पण करना चाहिए तत्पश्चात काली तिल हाथ में लेकर पितरों का आवाहन करना चाहिए। 
 
।।ॐ आगच्छन्तु में पितर इमं गृहन्तु जलान्जिलम।।
 
मेरे पितर आओ, मेरे द्वारा देने वाली जलांजलि को ग्रहण करो
 
अपने गौत्र का उच्चारण करके पितृ पर्वत से पिता, पितामह, प्रपितामह (पिता, दादा, परदादा) को 3-3 अंजलि दें, फिर माता, दादी, परदादी को अंजलि दें। इसी प्रकार नाना, परनाना, वृद्ध परनाना व नानी, परनानी, वृद्ध परनानी, मौसी, मामा, ससुर, भाई, बहन, काका, गुरु, सखा सभी के नाम का तर्पण करते हुए अंत में भीष्म पितामह का तर्पण करें अर्थात सभी को 3-3 अंजलि दें।
 
इस तर्पण के बाद जिनको हमने आंखों से देखा नहीं, कानों से सुना नहीं, नरक में हों, यातना भुगत रहे हों, इस जन्म के बांधव ही पिछले जन्म के बांधव हों, माता पक्ष के हों, पिता पक्ष के हों, सात समंदर पार जिनकी मृत्यु हो गई हो, मेरी 71 पीढ़ी के कोई भी बांधव हों, उनका विचार करके तर्पण करना चाहिए।
 
तत्पश्चात सूर्य व दसों दिशाओं को नमस्कार करके जल से अर्घ्य दें व इस कर्म को भगवान विष्णु को समर्पित कर प्रार्थना करना चाहिए-
 
'हे विष्णु भगवान, कर्म के साक्षी बन व मेरे पूर्वजों को आपके वैकुंठधाम में निवास दें।' फिर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देना चाहिए व भोजन कराना चाहिए।
 
'अनेन यथाशक्ति कृतेन देवर्षि मनुष्य पितृतर्पणारूयेन कर्मणा भगवान पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेवः प्रीयतां न मम।'
 
ॐ विष्णवे नम:। ॐ विष्णवे नम:। ॐ विष्णवे नम:।
 
इसे 3 बार 'विष्णवे नम:' बोलकर पूजन समाप्त करें व आसन के नीचे जल डालकर आंखों में लगा लें, फिर आसन से उठकर पूजन संपन्न करें। 
 
Show comments

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

एकादशी पर श्रीहरि विष्णु के साथ करें इन 3 की पूजा, घर में लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाएगा

गंगा सप्तमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है, जानिए महत्व

Shukra aditya yoga 2024: शुक्रादित्य राजयोग से 4 राशियों को होगा बेहद फायदा

04 मई 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में होंगे वक्री, इन राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

अगला लेख