Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गलत है भगवान को अर्पित प्रसाद खरीदना या बेचना, पढ़ें विशेष जानकारी

हमें फॉलो करें गलत है भगवान को अर्पित प्रसाद खरीदना या बेचना, पढ़ें विशेष जानकारी
webdunia

पं. हेमन्त रिछारिया

हमारे सनातन धर्म में प्रभु प्रसाद की बड़ी महिमा बताई गई है। शास्त्रानुसार प्रत्येक मनुष्य को परमात्मा का प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत ही भोजन करना चाहिए इसीलिए संतजन, वैष्णवजन भोज्य पदार्थ ग्रहण करने से पूर्व भगवान को अर्पित कर भोग लगाते हैं, तदुपरांत ही उसे प्रसाद रूप में ही ग्रहण करते हैं।
 
स्कंद पुराण आदि शास्त्रों में हमें प्रसाद की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। शास्त्रानुसार प्रभु का प्रसाद परम पवित्र होता है। इसे ग्रहण कर खाने वाले वाला भी पवित्र हो जाता है। भगवान के प्रसाद को ग्रहण करने अथवा वितरण करने में जाति का कोई बंधन नहीं होता अर्थात प्रसाद को सभी व्यक्ति समान रूप से ग्रहण कर सकते हैं। प्रभु प्रसाद कभी भी अशुद्ध या बासी नहीं होता और न ही यह किसी के द्वारा छूने से अपवित्र होता है। भगवान का प्रसाद हर स्थिति-परिस्थिति में गंगा जल के समान शुद्ध माना गया है।
 
क्या प्रसाद खरीदना-बेचना सही है?
 
वर्तमान समय में शनै:-शनै: हमारे आराध्य स्थल भी व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बनते जा रहे हैं। आज अधिकतर कई तीर्थस्थानों व आराध्य स्थलों पर शास्त्रविरुद्ध क्रिया-कलाप होने लगे हैं, चाहे वह शीघ्र दर्शन के लिए उत्कोच (अधार्मिक रीति से दिया गया धन) का लिया-दिया जाना हो, चाहे प्रभु को अर्पित प्रसाद का क्रय-विक्रय हो।
 
आजकल अधिकांश धार्मिक स्थानों पर यत्र-तत्र सूचना पट दिखाई देते हैं जिनमें भगवान को अर्पित भोग (प्रसाद) का विक्रय किया जाता है। श्रद्धालुगण भी भगवान के प्रसाद को खरीदकर स्वयं को धन्यभागी समझते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा करना शास्त्र विरुद्ध कर्म है। शास्त्रों में भगवान के प्रसाद का क्रय-विक्रय करना निषिद्ध बताया गया है।
 
स्कंद पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भगवान को अर्पित भोग को, जो भोग के पश्चात प्रसाद रूप में परिवर्तित हो चुका है, उसे खरीदते या बेचते हैं, वे दोनों ही नरकगामी होते हैं। यहां विशेष ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भगवान को अर्पण किया जाने वाला भोग तो खरीदा जा सकता है लेकिन भोग के उपरांत प्रसाद रूप में मिले भोग को क्रय या विक्रय नहीं करना चाहिए।
 
हमारा तो मत है कि जहां तक हो सके, पूर्ण शुचिता के साथ स्वयं के द्वारा बनाया गया भोग ही भगवान को अर्पण करना चाहिए। प्रभु प्रसाद का क्रय-विक्रय करना सर्वथा शास्त्रविरुद्ध है, अत: श्रद्धालुओं को इस कर्म से बचना चाहिए।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र
संपर्क : [email protected]
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या कैलाश मानसरोवर किनारे यज्ञ करना उचित था?