Significance of Dhanu Sankranti : हिन्दू शास्त्रों तथा ज्योतिष के अनुसार धनु संक्रांति सूर्य के राशि परिवर्तन का त्योहार है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2024 में यह दिन 16 दिसंबर 2024, दिन सोमवार को धनु संक्रांति पड़ रही है। आइए यहां जानते हैं धनु संक्रांति का महत्व और पूजन की विधि के बारे में-
Highlights
धनु संक्रांति की तिथि को लेकर असमंजस।
धनु संक्रांति पर महत्व क्या हैं?
धनु संक्रांति त्योहार कब मनाया जाना चाहिए?
धनु संक्रांति का महत्व जानें : इस दिन भगवान सत्यनारायण और सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र की मानें जब सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि परिवर्तन होता है, उसे संक्रांति कहते हैं और तब सूर्यदेव गुरु की राशि धनु या मीन में विराजमान होते हैं तो उस अवधि को खरमास कहा जाता है, जो एक माह का समय होता है। बता दें कि इस बार मतांतर के चलते धनु संक्रांति तिथि को लेकर असमंजस होने के कारण खरमास कहीं 15 दिसंबर तो कहीं 16 दिसंबर 2024 से 'मलमास' प्रारंभ होने की बात कहीं जा रही है, जो दिनांक 14 जनवरी 2025 तिथि जारी रहेगा।
आपको बता दें कि मलमास या खरमास में सभी तरह के मांगलिक कार्य, विवाह, यज्ञोपवित, गृह प्रवेश और निर्माण, नया व्यापार और किसी भी तरह के संस्कार से संबंधित शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं। सूर्य का बृहस्पति की राशि में प्रवेश को ठीक नहीं माना जाता है, क्योंकि बृहस्पति में सूर्य कमजोर स्थिति में रहते हैं। वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशि में प्रवेश करता है- पहला धनु में और दूसरा मीन में। सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है, जिसे खरमास भी कहते हैं। सूर्य का धनु या मीन में प्रवेश जब होता है तो इन दोनों माह में मांगलिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं। उल्लेखनीय है कि खर का अर्थ होता है गधा अर्थात सूर्यदेव की इस समय गति धीमी हो जाती है।
धनु संक्रांति से होता है मौसम परिवर्तन : इस संक्रांति से हेमंत ऋतु शुरू हो जाती है। यह कहा जाता है कि धनु राशि में सूर्य के आ जाने से मौसम में परिवर्तन हो जाता है और देश के कुछ हिस्सों में बारिश होने के कारण ठंड भी बढ़ सकती है। धनु संक्रांति में पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है, क्योंकि इस संक्रांति बारे में मान्यता है कि यह दिन बेहद पवित्र होने के कारण इस दिन विधिवत पूजा करने से जीवन के कष्टों का नाश होकर सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं।
धनु संक्रांति की पूजा विधि क्या हैं :
1. हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार धनु संक्रांति के दिन भगवान सत्यनारायण की षोडष पूजा करें।
2. इस दिन भगवान सूर्य के पूजन का विशेष महत्व होने के कारण सूर्य नारायण देव का पूजन करें।
3. प्रात: स्नानादि तथा दैनिक कार्य से निवृत्त हो भगवान का स्मरण करते हुए व्रत-उपवास के साथ ही भगवान का पूजन करें।
4. फिर लकड़ी के पाट पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान श्री विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
5. यदि मूर्ति है तो स्नान कराएं और चित्र है तो उसे अच्छे से साफ-सुथरा कर लें।
6. फिर देवताओं के मस्तक पर हल्दी कुंकू, चंदन और अक्षत लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
8. पूजा में उन्हें केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा, इत्यादि भोग के तौर पर अर्पित करें और हर प्रसाद पर तुलसी का एक पत्ता रखें।
9. पूजन के पश्चात सत्यनारायण तथा श्रीहरि विष्णु की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
10. धूप, और शुद्ध घी का दीपक अवश्य जलाएं, अंत में उनकी आरती करें।
11. तत्पश्चात माता लक्ष्मी, भगवान शिव जी और ब्रह्मा जी की आरती करें।
12. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य/ भोग चढ़ाएं, लेकिन भगवान को नैवेद्य में यह ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग न करें।
13. फिर सभी में नैवेद्य और चरणामृत का प्रसाद बांट दें।
14. धनु संक्रांति के दिन मंत्र- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' जपें।
15. इस दिन इष्ट देव की आराधना, सत्संग व कीर्तन करना चाहिए।
16. धनु संक्रांति पर कपड़े, भोजन, औषधि तथा रुपए-पैसे का दान करना श्रेष्ठ कहा गया है।
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