भारतीय ज्योतिष शास्त्र में भूकंप, तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के आने के पूर्व संकेतों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन गणितज्ञ वराह मिहिर की वृहत संहिता के अनुसार भूकंप आने के कुछ कारण होते हैं जिसके हमें संकेत मिलते हैं। उन्हीं कारण या संकेत में से एक है ग्रहण योग। आओ जानते हैं भूकंप और ग्रहण का क्या है रिश्ता।
ग्रहण के दौरान भूकंप :
1. सूर्य और चंद्रमा के बीच जब धरती आ जाती है तो चंद्रग्रहण होता है और जब सूर्य एवं धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य ग्रहण होता है।
2. जब भी कोई ग्रहण पड़ता है या आने वाला रहता है तो उस ग्रहण के 40 दिन पूर्व तथा 40 दिन बाद अर्थात उक्त ग्रहण के 80 दिन के अंतराल में भूकंप कभी भी आ सकता है। कभी कभी यह दिन कमी होते हैं अर्थात ग्रहण के 15 दिन पूर्व या 15 दिन पश्चात भूकंप आ जाता है।
3. ग्रहण के दौरान ग्रहों की छाया एक दूसरे पर पड़ती है। यह छाया धरती पर पड़े या चंद्रमा पर दोनों ही स्थिति में दोनों ही ग्रहों पर इसका असर होता है। दूसरा जब किसी विशेष कारण से सूर्य की किरणें धरती पर नहीं पड़ती है तो भी इसका असर धरती और चंद्रमा दोनों पर ही पड़ता है।
4. ग्रहण के कारण वायुवेग बदल जाता है, धरती पर तूफान, आंधी का प्राभाव बढ़ जाता है। ऐसे में धरती की भीतरी प्लेटों पर भी दबाव बढ़ता है और और आपस में टकराती है। वराह मिहिर के अनुसार भूकंप आने के कई कारण है जिसमें से एक वायुवेग तथा पृथ्वी के धरातल का आपस में टकराना है।
5. भूकंप के आने की संभावना उस क्षेत्र में अधिक रहती है जहां पर ग्रहण का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है और जहां की धरती के नीचे परिस्थितियां विपरीत हो। हालांकि भूकंप खासकर धरती की खास प्लोटों के पास ही आता है।
6. अधिकतर मौके पर भूकंप दिन के 12 बजे से लेकर सूर्यास्त तक और मध्य रात्रि से सूर्योदय के बीच ही आते हैं।