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भ्रम में ना रहें कि कोई युग लाखों वर्ष का होता है, जानिए 5 मान्यताएं

अनिरुद्ध जोशी
युग क्या होता है इस संबंध में 5 तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। दूसरी बात यह कि भारत के धार्मिक इतिहास को युगों की प्रचलित धारण में लिखना या मानना कितना उचित है? जैसे कि श्रीराम जी त्रैता में और श्रीकृष्ण जी द्वापर में हुए थे। इस तरह तो इतिहास कभी नहीं लिखा जा सकता है। इतिहास को तो तारीखों में ही लिखना होता है और वह भी तथ्‍य और प्रमाणों के साथ। आओ जानते हैं कि युग की 5 मान्यताएं।
 
 
उल्लेखनीय है कि आपने सुना ही होगा मध्ययुग, आधुनिक युग, वर्तमान युग जैसे अन्य शब्दों को। इसका मतलब यह कि युग शब्द को कई अर्थों में प्रयुक्त किया जाता रहा है। मतबल यह कि युग का मान एक जैसी घटनाओं के काल से भी निर्धारित हो सकता है। तो क्या यह सही है या कि युग की धारणा कुछ और ही है?
 
1. पहली मान्यता : युग के बारे में कहा जाता है कि 1 युग लाखों वर्ष का होता है, जैसा कि सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है।
 
 
4. दूसरी मान्यता : एक पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक युग का समय 1250 वर्ष का माना गया है। इस मान से चारों युग की एक चक्र 5 हजार वर्षों में पूर्ण हो जाता है।
 
3. तीसरी मान्यता : भारतीय ज्योतिषियों ने समय की धारणा को सिद्ध धरती के सूर्य की परिक्रमा के आधार पर नहीं प्रतिपादित किया है। उन्होंने संपूर्ण तारामंडल में धरती के परिभ्रमण के पूर्ण कर लेने तक की गणना करके वर्ष के आगे के समय को भी प्रतिपादित किया है। वर्ष को 'संवत्सर' कहा गया है। 5 वर्ष का 1 युग होता है। संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर और युगवत्सर ये युगात्मक 5 वर्ष कहे जाते हैं। बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि 60 वर्षों में 12 युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में 5-5 वत्सर होते हैं। 12 युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो 5 वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और 5वां युगवत्सर है।
 
 
4. चौथी मान्यता : ऋग्वेद के अन्य 2 मंत्रों से 'युग' शब्द का अर्थ काल और अहोरात्र भी सिद्ध होता है। 5वें मंडल के 76वें सूक्त के तीसरे मंत्र में 'नहुषा युगा मन्हारजांसि दीयथ:' पद में युग शब्द का अर्थ 'युगोपलक्षितान् कालान् प्रसरादिसवनान् अहोरात्रादिकालान् वा' किया गया है। इससे स्पष्ट है कि उदय काल में युग शब्द का अन्य अर्थ अहोरात्र विशिष्ट काल भी लिया जाता था। ऋग्वेद के छठे मंडल के नौवें सूक्त के चौथे मंत्र में 'युगे-युगे विदध्यं' पद में युगे-युगे शब्द का अर्थ 'काले-काले' किया गया है। वाजसनेयी संहिता के 12वें अध्याय की 11वीं कंडिका में 'दैव्यं मानुषा युगा' ऐसा पद आया है। इससे सिद्ध होता है कि उस काल में देव युग और मनुष्‍य युग ये 2 युग प्रचलित थे। तैतिरीय संहिता के 'या जाता ओ वधयो देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा' मंत्र से देव युग की सिद्धि होती है।
 
 
5. पांचवीं मान्यता : धरती अपनी धूरी पर 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकंड अर्थात 60 घटी में 1,610 प्रति किलोमीटर की रफ्तार से घूमकर अपना चक्कर पूर्ण करती है। यही धरती अपने अक्ष पर रहकर सौर मास के अनुसार 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकंड में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेती है, जबकि चन्द्रमास के अनुसार 354 दिनों में सूर्य का 1 चक्कर लगा लेती है। अब सौरमंडल में तो राशियां और नक्षत्र भी होते हैं। जिस तरह धरती सूर्य का चक्कर लगाती है उसी तरह वह राशि मंडल का चक्कर भी लगाती है। धरती को राशि मंडल की पूरी परिक्रमा करने या चक्कर लगाने में कुल 25,920 साल का समय लगता है। इस तरह धरती का एक भोगकाल या युग पूर्ण होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि लगभग 26,000 वर्ष बाद हमेशा ही उत्तर में दिखाई देने वाला ध्रुव तारा अपनी दिशा बदलकर पुन: उत्तर में दिखाई देने लगता है।
 
 
संदर्भ :
भारतीय ज्योतिष
लेखक : नेमीचंद्र शास्त्री
प्रकाशन : ज्ञानपीठ प्रकाशन

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