हर कोई जानना चाहेगा कि मरने के बाद उसकी गति कैसी होगी या वह अगला जन्म कहां लेगा। हालांकि इस संबंध में कुछ भी निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है। फिर भी धर्म और ज्योतिष शास्त्र में इसके कुछ संकेत बताए गए हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार :
कहते हैं कि जैसा कर्म करेगा इंसान वैसे फल देगा भगवान। अच्छे और बुरे कर्मों के बीच मध्यम कर्म भी होते हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कर्मों के आधार पर मुख्यत: दो तरह की गतियां होती हैं- गति और अगति।
गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है। गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं: 1.ब्रह्मलोक, 2.देवलोक, 3.पितृलोक और 4.नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है। उक्त लोगों में जाने के लिए तीन मार्ग है- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।
अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। अगति के चार प्रकार है- 1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति। क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है। भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है। अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है। गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार :
1. यदि जातक की कुंडली के लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो और कोई पापग्रह उसे देख नहीं रहा हो तो ऐसे जातक मरने के बाद सद्गति प्राप्त करते हैं।
2. यदि जातक की कुंडली में कहीं पर भी कर्क राशि में गुरु स्थित हो तो जातक मृत्यु के बाद उत्तम कुल में जन्म लेता है। इसके अलवा यदि जन्म कुंडली में 4 ग्रह उच्च के हों तो जातक श्रेष्ठ मृत्यु का वरण करता है।
3. यदि किसी जातक की कुंडली के लग्न में उच्च का गुरु चंद्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टम स्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक सैंकड़ों पुण्य कार्य करते हुए सद्गति प्राप्त होता है।
4. यदि किसी की कुंडली के लग्न में गुरु और चंद्र चतुर्थ भाव में और तुला का शनि एवं सप्तम भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में मृत्यु उपरांत ब्रह्मलोक नहीं तो देवलोक में जाता है।
5. यदि जातक की कुंडली के अष्टम भाव में राहु है तो जातक परिस्थिति के कारण पुण्यात्मा बन जाता है और मरने के बाद राजकुल में जन्म लेता है।
6. यदि जातक की कुंडली के अष्टम भाव पर किसी भी प्रकार से शुभ अथवा अशुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं पड़ रही रहो और वह भाव ग्रहों से रिक्त हो जातक ब्रह्मलोक नहीं तो देवलोक की यात्रा करता है।
7. यदि जातक की कुंडल के अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चंद्र, ये तीनों ग्रह देखते हों या अष्टम भाव को शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुंभ राशि हो तो जातक मृत्यु के बाद विष्णुलोक प्राप्त करता है या वैकुंड में निवास करता है।
8. यदि जातक की कुंडली में ग्यारहवें भाव में सूर्य-बुध हों, नवें भाव में शनि तथा अष्टम भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात देवलोक या ब्रह्मलोक को गमन करता है।
9. यदि जातक की कुंडली में बारहवां भाव शनि, राहु या केतु से युक्त हो फिर अष्टमेश (कुंडली के आठवें भाव का स्वामी) से युक्त हो अथवा षष्ठेश (छठे भाव का स्वामी) से दृष्ट हो तो मृत्यु के बाद जातक नरक की यात्रा करता है लेकिन यदि उसने पुण्यकर्म अर्जित किए हैं तो वह इससे बच जाता है।
10. यदि जातक की कुंडली में गुरु लग्न में हो, शुक्र सप्तम भाव में हो, कन्या राशि का चंद्रमा हो एवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है।