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...तो आप आ सकते हैं शैतानी शक्तियों की चपेट में, जानिए 14 कारण

हमें फॉलो करें ...तो आप आ सकते हैं शैतानी शक्तियों की चपेट में, जानिए 14 कारण

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 3 फ़रवरी 2020 (13:33 IST)
ज्योतिष और परंपरागत किवदंतियों के अनुसार कुंडली के योग और कुछ ऐसी स्थितियां या कर्म होते हैं जिन्हें
करने से आप शैतानी या नकारात्मक शक्तियों के वश में हो सकते हैं। आओ जानते हैं इसके 14 कारण।
 
 
1. ज्योतिष मान्यता के अनुसार यदि जातक की कुंडली में लग्न, गुरु, धार्मिक भाव और द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रह अपना प्रभाव डालें तो ऐसा मनुष्य नकारात्मक शक्तियों से प्रभावित हो सकता है। यदि कुंडली में चंद्रमा अथवा लग्न लग्नेश पर राहु केतु का प्रभाव है तो उस जातक पर ऊपरी हवा, जादू-टोने इत्यादि का असर अति शीघ्र होता है।
 
 
2. बृहस्पति को पितृदोष, शनि को यमदोष का कारक माना गया है। इसी प्रकार शुक्र जलदोष, मंगल को शाकिनी दोष, राहू सर्प तथा प्रेत दोष का कारक होता है। यदि कुंडली में उक्त में से एक भी दोष है तो जातक आसानी से शैतानी शक्तियों के वश में हो सकता है। नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।

 
3. चंद्र, शनि, राहू और केतु जातक की मानसिक अवस्था को प्रभावित करते हैं। श्वेत वर्ण चंद्रमा का होता है। ये मन का कारक है। इसका शत्रु राहू है। यदि कुंडली में इनका योग है तो जातक पर नकारात्मक शक्तियों का असर होता है। ऐसे में जातक अशुभ व अपवित्र स्थानों पर स्वत: ही चला जाता है और मन भी पापयुक्त विचारों से ग्रसित होता है। 
 
 
4. अगर किसी महिला की कुंडली के सातवें भाव में मंगल, शनि, राहू अथवा केतु की युति हो तो उसे दुष्ट आत्माएं प्रभावित कर सकती हैं। कुंडली के पंचम भाव में सूर्य व शनि की युति बने, सातवें भाव में चंद्रमा कमजोर हो, 12वें भाव में गुरु बैठा हो तो ऐसा मनुष्य प्रेतबाधा से पीड़ित हो सकता है। इसके अलावा अगर गुरु शनि, राहू या केतु से संबंध रखे तो वह उनसे नकारात्मक वृत्ति ग्रहण करता है। ऐसा गुरु अपना शुभ प्रभाव खो देता है। ऐसे जातक को दुष्ट आत्माएं परेशान कर सकती हैं।
 
 
5. प्राचीन कालीन समाज में यह मान्यता थी कि सफेद रंग की चीजें जैसे पेड़ा, दूध, मिठाई, चीनी, खीर आदि का सेवन करने के बाद अनजान रास्ते पर, सुनसान जगह या चौराहे पर नहीं जाना चाहिए। ऐसा करने से नकारात्मक शक्तियां पीछे लग जाती है। यदि जाना जरूरी हो तो चुटकी भर नमक का सेवन करने ही जाएं।

 
6. किसी दूषित स्थान, सुनसान कुआं, बावड़ी, श्मशान, जंगल या जहां अनेक दुर्घटनाएं हो चुकी हों ऐसे स्थान पर देर रात या दोपहर को कभी भी नहीं जाना चाहिए और हो सके तो इससे दूर ही रहना चाहिए।

 
7.कुछ लोग प्लेनचिट, उइजा बोर्ड, तंत्र मंत्र आदि तरीके से भूत बुलाने का कार्य करते हैं ऐसे लोग भी शै‍तानी शक्तियों की चपेट में जल्दी ही आ जाते हैं। 

 
8. जिसका मनोबल कमजोर होता है। किसी भी प्रकार की पूजा-पाठ या प्रार्थना नहीं करते हैं उन पर नकारात्मक शक्तियां हावी हो जाती है।

 
9. शराब, वैश्यावृति आदि कार्यों में ही जो लोग जीवन का सुख समझते हैं। ऐसे व्यक्ति भी शैतानी शक्तियों की चपेट में आ जाते हैं। जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचरी हैं, वे आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेत योनि के होते हैं। 

 
10. धर्म के नियम के अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं, ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। 

 
11.कुंडली में सप्तम भाव में अथवा अष्टम भाव में क्रूर ग्रह राहु-केतु, मंगल, शनि पीड़ित अवस्था में हैं तो ऐसा जातक भूत-प्रेत, जादू-टोने तथा ऊपरी हवा आदि जैसी परेशानियों से अति शीघ्र प्रभावित होता है। जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है। षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।

 
12. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो। लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो। निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय। निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें भाव में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय। चार राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।

 
13. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो। लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों। मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्थ हो। पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो। शनि, राहु, केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो। जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रह हों। अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो। राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो। लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।

 
14. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो। द्वितीय में राहु, द्वादश में शनि, षष्ठ में चन्द्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो। चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो। चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो। नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नीची राशि का हो। 

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