ज्योतिष शास्त्रों के अध्ययन के अनुसार यह पता चलता है कि निश्चित भविष्य में सभी कुछ अनिश्चित भी है क्योंकि यह जीवन आपके भाव, विचार और आपके कर्मों से निर्मित है। कर्मों की गति जानकर ही आपके भविष्य के बारे में बताया जा सकता है, परंतु फिर भी बहुत कुछ अनिश्चित है। जैसे कि आपसे कहा जाए कि आपकी लंबी आयु है। अब आप चाहे हैं तो यह सुनकर ही पहाड़ पर जाएं और वहां से कुद कर अपनी जान दे दें, तो यह तो दुर्घटना ही होगी। क्योंकि प्रकृति या ईश्वर ने तो आपको लंबी आयु ही दी थी। अब जानिए कि क्या आपकी कुंडली में है लंबी आयु के योग और नहीं है तो कैसे प्राप्त करें।
जन्म से मृत्यु तक का समय आयु कहलाता है। इस आयु को भी हमारे ऋषि-मुनियों ने अरिष्टायु, अल्पायु, मध्यायु, दीर्घायु, परमायु आदि में बांटा है। आयुर्वेद कहता है कि प्रकृति हमें 120 वर्ष जीने का मौका देती है परंतु आधुनिक युग के चलते मानव ने अपनी औसत आयु घटा ली है।
कुंडली में लंबी आयु के योग
1. चंद्र और गुरु बारहवें भाव में हों तो आयु दीर्घ होगी। सूर्य व चंद्र की युति 11वें भाव में हो तो आयु ठीक होगी।
2. दसवें भाव में शनि और दूसरे भाव में स्त्री ग्रह हो या 11वें में सूर्य और राहु हों तथा शनि अशुभ भाव में हो या अशुभ हो और पुरुष ग्रह साथ हों या न हों तो जातक दीर्घायु होगा।
3. लाल किताब के अनुसार आयु का विचार चंद्र से करते हैं। चंद्र की भाव स्थिति के अनुसार आयु का निर्धारण किया जाता है। चंद्र का शुक्र से संबंध हो तो आयु 85 वर्ष होगी। पुरुष ग्रह का साथ हो तो 96 वर्ष और पाप ग्रह से संबंध हो तो 30 वर्ष कम होगी। अर्थात 60 वर्ष।
कैसे करें आयु का लंबा :
1. गुरु ग्रह: यह भी कहा जाता है कि गुरु ग्रह की स्थिति के अनुसार ही आयु का निर्धारण होता है। गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में है तो आयु भी लंबी होगी। अत: गुरु ग्रह को बलवान करने के लिए शुद्ध सात्विक, शाकाहरी बने रहकर गुरुवार, एकादशी और पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। माथे पर चंदन या केसर का तिलक लगाना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए और पीपल में जल अर्पित करना चाहिए। साथ ही अपने से बड़ों को नाराज नहीं करना चाहिए।
2. योग क्रियाएं : जितनी जल्दी हो सके योग की क्रियाएं सीख लें। योग क्रियाएं ही आपको दीर्घायु प्रादान करने में सक्षम है। यह बहुत जरूरी है कि आप यह जान लें कि यौगिक क्रियाएं किस तरह से कार्य करती हैं। यहां योगासन की बात नहीं कर रहे हैं।
3. प्राणायाम : प्राणवायु से ही आयु निर्धारित होती है। प्राणवायु अर्थात आपके भीतर जो वायु का आवागमन है वह ही प्राणवायु है। श्वास-प्रश्वास में स्थिरता और संतुलन से शरीर और मन में भी स्थिरता और संतुलन बढ़ता है। इससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है साथ ही मन के स्थिर रहने से इसका निगेटिव असर शरीर और मस्तिष्क पर नहीं पड़ता है।
4.मिताहार : मिताहार का अर्थ सीमित आहार। जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही भोजन लेना और साथ ही भोजन में इस्तेमाल किए जाने वाले तत्व भी सीमित हैं तो यह मिताहार है। मिताहार के अंतर्गत भोजन अच्छी प्रकार से घी आदि से चुपड़ा हुआ होना चाहिए। मसाले आदि का प्रयोग इतना हो कि भोजन की स्वाभाविक मधुरता बनी रहे। भोजन करते समय ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करें। इस प्रकार के मिताहार से योगाभ्यास में स्फूर्ति बनी रहती है। साधक शीघ्र ही अपने अभ्यास में सफलता पाने लगता है।