सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। सूर्य प्रत्येक माह दूसरी राशि में गोचर करता है। इस तरह वर्ष में 12 संक्रातियां होती हैं। सूर्य मेष राशि से अंतिम राशि मीन तक भ्रमण करता है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को मेष संक्रांति कहते हैं। आओ जानते हैं इसके महत्व को।
1. इस बार मेष संक्रांति 14 अप्रैल 2021 दिन बुधवार को पड़ रही है। लाला रामस्वरूप के पंचांग में 13 अप्रैल बताई गई है। मंगल को नक्षत्र अश्विनी है जिसके बाद बुधवार को भरणी लगेगा। हिन्दू माह अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के बाद मेष संक्राति है। चैत्र प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होगा। इस दिन सूर्य की पूजा करने का फल कई गुना होता है। ऐसे में इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। मेष संक्रांति के दिन दान पुण्य, पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है।
मेष संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त :
* मेष संक्रान्ति बुधवार, अप्रैल 14, 2021 को
* मेष संक्रान्ति पुण्य काल- सुबह 5 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 22 मिनट तक
* अवधि- 06 घंटे 25 मिनट्स
* मेष संक्रान्ति महा पुण्य काल- सुबह 5 बजकर 57 मिनट से सुबह 8 बजकर 5 मिनट तक
2. मेष संक्रांति सौर मास का पहला माह भी माना गया है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस दिन का होता है। सूर्य एक राशि में 30 दिन तक रहता है। सौर माह का पहला माह है मेष। सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
3. खगोलशास्त्र के अनुसार मेष संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायन की आधी यात्रा पूर्ण कर लेते हैं। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का।
4. ये बारह संक्रान्तियां सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता। घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को, ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगल को, मन्दाकिनी बुध को, मन्दा बृहस्पति को, मिश्रिता शुक्र को एवं राक्षसी शनि को होती है। कोई संक्रान्ति यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों।
5. 27 या 28 नक्षत्र को सात भागों में विभाजित हैं- ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा। उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी।
6. देशभर में मेष संक्रांति को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पंजाब में जहां मेष संक्रांति को वैशाख बोला जाता है वहीं तमिलनाडु में इसे पुथांदु के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा बिहार में इसे सतुवानी तो पश्चिम बंगाल में पोइला बैसाख के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा उड़ीसा में इसे पना संक्रांति कहा जाता है।