कलश की स्थापना गृहप्रवेश, नवरात्रि पूजन, दीपावली पर लक्ष्मी पूजन, यज्ञ-अनुष्ठान और सभी तरह के मांगलिक कार्यों के शुभारंभ अवसर पर आदि के अवसर की जाती है। आओ जानते हैं इसकी पूजा घर में स्थापना करने के क्या है 3 फायदे।
1. अमृत का घड़ा : यह मंगल-कलश समुद्र मंथन का भी प्रतीक है। सुख और समृद्धि के प्रतीक कलश का शाब्दिक अर्थ है- घड़ा। जल को हिन्दू धर्म में पवित्र माना गया है। अत: पूजा घर में इसे रखा जाता है। इससे पूजा सफल होती है। यह कलश उसी तरह निर्मित है जिस तरह की अमृत मंथन के दौरान मदरांचल को मथकर अमृत निकाला था। जैसे जटाओं से युक्त नारियल मदरांचल पर्वत है। कलश विष्णु के समाय और उसमें भरा जल क्षीरसागर के समान है। उस पर बंधा सूत वासुकि नाग है जिससे मंथन किया गया था। यजमान और पुरोहित सुर और असुरों की तरह हैं या कहें कि मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय इसी तरह का मंत्र पढ़ा जाता है।
2. ईशान कोण में जल की स्थापना : वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान कोण में जल की स्थापना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। अत: मंगल कलश के रूप में जल की स्थापना करें। घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें और वहां पर मंगल कलश की स्थापना करें।
3. वातावरण बना रहता है शुद्ध और सकारात्मक : ऐसा कहते हैं कि मंगल कलश में तांबे के पात्र में जल भरा रहता है जिससे विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। नारियल में भी जल भरा रहा है। दोनों के सम्मिलन से ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के जैसा वातावरण निर्मित होता है जो वातावरण को दिव्य बनाती है। इसमें जो कच्चा सूत बांधा जाता है वह ऊर्जा को बांधे रखकर वर्तुलाकर वलय बनाता है। इस तरह यह एक प्रकार से सकारात्मक और शांतिदायक ऊर्जा का निर्माण करता है जो धीरे धीरे संपूर्ण घर में व्याप्त हो जाती है।
कैसे रखा जाता मंगल कलश : ईशान भूमि पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर यह मंगल कलश रखा जाता है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकल उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है।