पुष्य नक्षत्र 7 नवंबर शनिवार को सुबह 8:04 बजे शुरू होगा जो अगले दिन 8 नवंबर रविवार को सुबह 8:44 बजे तक रहेगा। पुष्य नक्षत्र जब शनिवार को आता है तो क्या होता है जानिए।
नत्रक्षों का राजा : पुष्य को नत्रक्षों का राजा भी कहा जाता है। यह नक्षत्र सप्ताह के विभिन्न वारों के साथ मिलकर विशेष योग बनाता है। इन सभी का अपना एक विशेष महत्व होता है। यदि पुष्य नक्षत्र सोमवार को आए तो उसे सोम पुष्य, मंगलवार को आए तो उसे भौम पुष्य, बुधवार को आए तो बुध पुष्य, गुरुवार को आए तो गुरु पुष्य, शुक्र को आए तो शुक्र पुष्य, शनि को आए तो शनि पुष्य और रवि को आए तो रवि पुष्य नक्षत्र कहते हैं। इनमें से गुरु पुष्य, शनि पुष्य और रवि पुष्य नक्षत्र सबसे उत्तम बताए गए हैं। सभी का फल अलग-अलग होता है। बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए हैं। अत: इस दिन कोई भी शुभ या मंगल कार्य ना करें और ना ही कोई वस्तु खरीदें।
शनि का नक्षत्र : पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि हैं जो चिरस्थायित्व प्रदान करते हैं और इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जिसका कारक सोना है। इसी मान्यता अनुसार इस दिन खरीदा गया सोना शुभ और स्थायी माना जाता है। पुष्य नक्षत्र पर गुरु, शनि और चंद्र का प्रभाव होता है तो ऐसे में स्वर्ण, लोहा और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है। ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को मंगलकर्ता, वृद्धिकर्ता एवं आनंद कर्ता कहा गया है।
चिरस्थायी : पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं जो सदैव शुभ कर्मों में प्रवृत्ति करने वाले, ज्ञान वृद्धि एवं विवेक दाता हैं तथा इस नक्षत्र का दिशा प्रतिनिधि शनि हैं जिसे 'स्थावर' भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है स्थिरता। इसी से इस नक्षत्र में किए गए कार्य चिरस्थायी होते हैं। अत: शनि पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई वस्तु चीर काल तक फल देने वाली और स्थायी रूप से विद्यमान रहती है। इस नक्षत्र में सोने के अलावा वाहन, भवन और भूमि खरीदना भी शुभ होता है।
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव : शनिवार के दिन पुष्य नक्षत्र योग होने से इस दिन शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव से त्रस्त लोगों का शनि आराधना का विशेष फल प्राप्त होगा। शनिदेव को प्रसन्न् करने के लिए यह दिन सबसे अच्छा माना जाता है। जो व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती या ढैया से परेशान हैं उन्हें इस दिन कुछ खास उपाय करके शनि को प्रसन्न् करने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन कालसर्पदोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
साथ ही इस किए गए धर्म-कर्म से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। वैसे तो हर 27 दिन में पुष्य नक्षत्र का योग बनता है परंतु दीपावली पूर्व आने वाला पुष्य नक्षत्र सबसे अधिक शुभ माना जाता है। यह शनि की कृपा दिलाने वाला योग है। इस दिन शनि के निमित्त दान-पुण्य और धर्म-कर्म करने से विशेष लाभ मिलेगा। स्थाई संपत्ति खरीदने के लिए सर्वश्रेष्ठ योग ऐसा माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई सामग्री कभी नष्ट नहीं होती।