Astrology : पंचांग में तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार ये पांच अंग महत्व पूर्ण होते हैं, परंतु इसी के साथ ही मास, मुहूर्त, आनन्दादि योग और सम्वत्सर को भी बहुत महत्वपूर्ण मानया गया है जिन्हें मिलाकर ही संपूर्ण फलादेश निकलता है। आओ जानते हैं कि योग कितने होते हैं और आनन्दादि योग क्या हैं एवं ये कितने होते हैं।
27 योग होते हैं- विष्कम्भ, प्रीति, आयुष्मान्, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
योग-स्वामी
विष्कुम्भ-यमराज
प्रीति -विष्णु
आयुष्मान-चन्द्रमा
सौभाग्य-ब्रह्मा
शोभन-बृहस्पति
अतिगण्ड-चन्द्रमा
सुकर्मा-न्द्र
धृति-जल
शूल-सर्प
गण्ड-अग्नि
वृद्धि-सूर्य
ध्रुव-भूमि
व्याघात-वायु
हर्षण-भग
वङ्का-वरुण
सिद्धि-गणेश
व्यतिपात-रुद्र
वरीयान-कुबेर
परिघ-विश्वकर्मा
शिव-मित्र
सिद्ध-कार्तिकेय
साध्य-सावित्री
शुभ-लक्ष्मी
शुक्ल-पार्वती
ब्रह्म-अश्विनीकुमार
पञ्चाङ्गों में दो प्रकार के योगों की गणना की जाती है। सात वारों तथा अभिजीत सहित अश्विनी आदि अट्ठाईस नक्षत्रों को मिलाने से आन्दादि 28 योग बनते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा के राशि अंशों के मेल से बनने वाले योग 27 होते हैं। इसी प्रकार वार तथा नक्षत्रों के विशेष संयोजन से 28 योग बनते हैं जिन्हें 'आनन्दादि' योग कहते हैं।
प्रथम वार रविवार तथा प्रथम नक्षत्र अश्विनी इन दोनों के योग से प्रथम आनन्द योग बनता है। पुन: सोमवार के दिन (अश्विनी को लेकर 4 नक्षत्र तक छोड़कर 5 वां) मृगशिरा नक्षत्र के मूल से दूसरा कालदण्ड योग बनता है। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों का अन्य वारों में योग होने पर समस्त 28 योग बनते हैं। इसमें अभिजीत नक्षत्र को भी सम्मिलित किया जाता है जो उत्तराषाढ़ा का अन्तिम चरण तथा श्रवण के प्रथम चरण की 4 घटी अर्थात् 53 कला 20 विकला कुल 19 घटी का माना गया है।
योग के नाम और फल:-
आनन्द- सिद्धि-
कालदण्ड- मृत्यु-
धुम्र- असुख-
धाता/प्रजापति- सौभाग्य-
सौम्य- बहुसुख-
ध्वांक्ष- धनक्षय-
केतु/ध्वज- सौभाग्य-
श्रीवत्स- सौख्यसम्पत्ति-
वज्र- क्षय-
मुद्गर- लक्ष्मीक्षय-
छत्र- राजसन्मान-
मित्र- पुष्टि-
मानस- सौभाग्य-
पद्म- धनागम-
लुम्बक- धनक्षय-
उत्पात- प्राणनाश-
मृत्यु- मृत्यु-
काण- क्लेश-
सिद्धि- कार्यसिद्धि-
शुभ- कल्याण-
अमृत- राजसन्मान-
मुसल- धनक्षय-
गद- भय-
मातङ्ग- कुलवृद्धि-
राक्षस- महाकष्ट-
चर- कार्यसिद्धि-
स्थिर- गृहारम्भ-
वर्धमान- विवाह-
शुभ योग : इसमें आनन्द, धाता, सौम्य, श्रीवत्स, धन, मित्र, मानस, सिद्धि, शुभ, अमृत, मातंग, सुस्थिर तथा प्रवर्धमान ये सभी कार्यों के लिए शुभ हैं, शेष अन्य योग अशुभ माने गए हैं।
इस तरह जाने उपरोक्त योग कब रहेगा?
रविवार को अश्विनी नक्षत्र से गिने, सोमवार को मृगशिरा से गिने, मंगलवार को आश्लेषा से गिने, बृहस्पतिवार को अनुराधा से गिने, शुक्रवार को उत्तराषाढ़ा से गिने और शनिवार को शतभिषा से गिने। रविवार को अश्विनी हो तो आनन्द योग, भरणी हो तो कालदण्ड इत्यादि इस क्रम में योग जानेंगे। इसी प्रकार से सोमवार को मृगशिरा हो तो आनन्द, आद्रा हो तो कालदण्ड इत्यादि क्रम से जानें।