दीपावली है यक्ष, गंधर्व और देवों का त्योहार, करते हैं इस दिन साधना

अनिरुद्ध जोशी
भारतवर्ष में प्राचीनकाल में देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग, विद्याधर आदि अनेक प्रकार की जाति हुआ करती थी। सभी के पर्व और त्योहार अलग अलग थे परंतु कुछ त्योहार कामन भी थे। जैसे वर्तमान में भारत के हर प्रांत में अलग अलग त्योहार मनाए जाते हैं उदाहरणार्थ छट पर्व उत्तर भारत का त्योहार है दक्षिण भारत में इसका कोई खास महत्व नहीं है। उसी तरह प्राचीन काल की जातियों के त्योहार भी भिन्न होते थे। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं में से एक यक्ष जाति भी थी जो कई तरह के उत्सव मनानी थी।
 
 
यक्षों का त्योहार : कहते हैं कि दीपावली यक्ष नाम की जाति के लोगों का ही उत्सव था। उनके साथ गंधर्व भी यह उत्सव मनाते थे। मान्यता है कि दीपावली की रात्रि को यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-विलास में बिताते व अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद करते थे। सभ्यता के विकास के साथ यह त्योहार मानवीय हो गया और धन के देवता कुबेर की बजाय धन की देवी लक्ष्मी की इस अवसर पर पूजा होने लगी, क्योंकि कुबेर जी की मान्यता सिर्फ यक्ष जातियों में थी पर लक्ष्मीजी की देव तथा मानव जातियों में। कई जगहों पर अभी भी दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर की भी पूजा होती है।
 
बिरंगी आतिशबाजी, स्वादिष्ट पकवान एवं मनोरंजन के जो विविध कार्यक्रम होते हैं, वे यक्षों की ही देन हैं। कहते हैं कि लक्ष्मी, कुबेर के साथ गणेशजी की पूजा का प्रचलन भौव-सम्प्रदाय के लोगों ने किया। ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में उन्होंने गणेशजी को प्रतिष्ठित किया। यदि तार्किक आधार पर देखें तो कुबेर जी मात्र धन के अधिपति हैं जबकि गणेश जी संपूर्ण ऋद्धि-सिद्धि के दाता माने जाते हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी जी मात्र धन की स्वामिनी नहीं वरन ऐश्वर्य एवं सुख-समृद्धि की भी स्वामिनी मानी जाती हैं। अत: कालांतर में लक्ष्मी-गणेश का संबध लक्ष्मी-कुबेर की बजाय अधिक निकट प्रतीत होने लगा। दीपावली के साथ लक्ष्मी पूजन के जुड़ने का कारण लक्ष्मी और विष्णुजी का इसी दिन विवाह सम्पन्न होना भी माना गया है।
 
 
देवों का त्योहार : कहते हैं कि दीपावली का पर्व सबसे पहले राजा महाबली के काल से प्रारंभ हुआ था। विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बली की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएंगे। तभी से दीपोत्सव का पर्व प्रारंभ हुआ। यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बली को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।
 
 
नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, अमावस्या को बड़ी दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णीमा को देव दिवाली होती है। यह दिवाली देवता मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के दिन सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता को दर्शाते हैं।
 
 
मनुष्यों का त्योहार भी : इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था इसलिए दक्षिण भारत के लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन के ठीक एक दिन पहले श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस खुशी के मौके पर दूसरे दिन दीप जलाए गए थे। यह दिन भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी है। गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी। एक मान्यता अनुसार इसी दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थे। इसी दिन माता काली भी प्रकट हुई थी इसलिए बंगाल में दीपावली के दिन कालिका की पूजा का प्रचलन है।

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