मंत्र - मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरासुरे यत्पुजितं मया देव परिपूर्णम् तदस्मतु.. अथवा
मंत्रहीनं क्रियाहीनं यतपूजनं हरे:! सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीरांजने शिवे। ! - अर्थात पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी (आरती) नीरांजन कर लेने से सारी पूर्णता आ जाती है।
आरती ढोल, नगाड़े, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों के तथा जय-जयकार के शब्द के साथ शुद्ध पात्र में घी या कपूर से अनेक बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए।
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ततश्च मूलमन्त्रेण दत्वा पुष्पांजलित्रयम् ।
महानीरांजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनै: !!
प्रज्वालयेत् तदार्थ च कर्पूरेण घृतेन वा।
आरार्तिकं शुभे पात्रे विश्मानेकवार्तिकम्।!
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