ज्योतिष के अनुसार पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप, वर्तमान समय में कुंडली में वर्णित ग्रह दिशा प्रदान करते हैं। यदि कर्म अच्छे होते हैं तो अगले जन्म में ग्रह सकारात्मक परिणाम देते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि इसी क्रम में पितृदोष का भी निर्माण होता है।
यदि कोई इस जन्म में पिता की हत्या, पिता का अपमान, बड़े बुजुर्गों का अपमान आदि करते हैं, तो अगले जन्म में निश्चित तौर पर उसकी कुंडली में ‘पितृदोष आ जाता है। कहा जाता है कि पितृदोष वाले जातक से पूर्वज दुखी रहते हैं।'
कैसे जानें कि कुंडली में पितृदोष है या नहीं : कुंडली में पितृदोष का सृजन दो ग्रहों सूर्य व मंगल के पीड़ित होने से होता है क्योंकि सूर्य का संबंध पिता से व मंगल का संबंध रक्त से होता है। सूर्य के लिए पाप ग्रह शनि, राहु व केतु माने गए हैं।
अतः जब सूर्य का इन ग्रहों के साथ दृष्टि या युति संबंध हो तो सूर्यकृत पितृदोष का निर्माण होता है। इसी प्रकार मंगल यदि राहु या केतु के साथ हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगलकृत पितृ दोष का निर्माण होता है।
दो प्रकार के होते हैं पितृदोष : सूर्यकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने से बड़े व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते।
वहीं मंगलकृत पितृदोष होने से जातक के अपने परिवार या कुटुंब में अपने छोटे व्यक्तियों से विचार नहीं मिलते।