जानिए शनि के शुभ-अशुभ होने पर क्या करें उपाय

कैसे शुभ असर देगा शनि ग्रह, जानिए

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* लाल किताब के अनुसार शनि ग्रह का प्रभाव और उपाय


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पुराणों के अनुसार शनि के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं।

शनि के फेर से देवी-देवताओं को तो छोड़ो शिव को भी बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण को असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। शनि को सूर्य का पुत्र माना जाता है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है।


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पुराण कथा : वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया।

इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि यह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।

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न्यायाधीश है शनि : मान्यता है कि सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।

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शनि को यह पसंद नहीं : शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।

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शुभ की निशानी : शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।

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अशुभ की निशानी : शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।

उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें (ॐ भैरवाय नम:)। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। छायादान करें- अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नम: ।


सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।


देवता: भैरव जी
गोत्र: कश्यप
जाति: क्षत्रिय
रंग: श्याम, नीला
वाहन: गिद्ध, भैंसा
दिशा: वायव्य
वस्तु: लोहा, फौलाद
पोशाक: जुराब, जूता
पशु: भैंस या भैंसा
वृक्ष: कीकर, आक, खजूर का वृक्ष
राशि: बु.शु.रा.। सू, चं.मं.। बृह.
भ्रमण: अढ़ाई वर्ष
शरीर के अंग: दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी
पेशा: लुहार, तरखान, मोची
सिफत: मुर्ख, अक्खड़, कारिगर
गुण: देखना, भालना, चालाकी, मौत, बीमारी
शक्ति: जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
राशि: मकर और कुम्भ का स्वामी। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
अन्य नाम: यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण : खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है।

गुरु शक्ति पृथ्‍वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है ।

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