सप्तमुखी रुद्राक्ष : यह सप्तमातृका तथा ऋषियों का प्रतिनिधि है। अत्यंत उपयोगी तथा लाभप्रद रुद्राक्ष है। धन-संपत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है साथ ही कार्य, व्यापार आदि में बढ़ोतरी कराने वाला है। ज्योतिष की दृष्टि से जब भी व्यक्ति का मारकेश समय होता है तब इसे धारण कराने पर आश्चर्यजनक परिणाम देखने में आए हैं। इसके धारक की मृत्यु शस्त्र से नहीं होती और वह अकाल मृत्युहारी होता है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे धारण करने वाले को धन तथा स्त्री सुख भरपूर मिलता है।
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अष्टमुखी रुद्राक्ष : यह अष्टदेवियों का प्रतिनिधि है। ज्ञानप्राप्ति, चित्त में एकाग्रता में उपयोगी तथा मुकदमे में विजय प्रदान करने वाला है। धारक की दुर्घटनाओं तथा प्रबल शत्रुओं से रक्षा करता है। इस रुद्राक्ष को विनायक का स्वरूप भी माना जाता है। यह व्यापार में सफलता और उन्नतिकारक है। सट्टे, जुए तथा आकस्मिक धनप्राप्ति में पूर्ण सहायक, प्रत्येक प्रकार के विघ्नादि की शांति तथा प्रेम-प्रसंगों में इसका उपयोग होता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति पर किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग का असर नहीं होता है। यह मुक्ति प्राप्त करने तथा कुंडलिनी जागरण में सहायक होता है।
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नवममुखी रुद्राक्ष : यह नवशक्ति का प्रतिनिधि है तथा नवदुर्गा, नवनाथ, नवग्रह का भी प्रतीक माना जाता है। समस्त प्रकार की साधनाओं में सफलता तथा यश-कीर्ति की प्राप्ति में बेजोड़ है। शत्रुओं को परास्त तथा मुकदमे में सफलता के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला तथा सुख-शांति में सहायक होकर व्यापार में वृद्धि कराने वाला होता है। इसे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इसके धारक की अकालमृत्यु नहीं होती तथा आकस्मिक दुर्घटना का भी भय नहीं रहता।
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दशममुखी रुद्राक्ष : यह दस दिशाएँ, दस दिक्पाल का प्रतीक है। धारण करने वाले को लोक सम्मान, कीर्ति, विभूति और धन की प्राप्ति होती है। धारक की सभी लौकिक-पारलौकिक कामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी विघ्न-बाधाओं से रक्षा कर तंत्र का प्रभाव नहीं होने देता। व्यक्ति समस्त संसार में प्रसिद्धी तथा सम्मान प्राप्त करता है। ( क्रमश:)