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मांगलिक कार्यों में कलश का महत्व...

कलश : मंगल कामनाओं का प्रतीक

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सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारंभ, नया व्यापार, नववर्ष आरंभ, गृह प्रवेश, दिवाली पूजन, यज्ञ, अनुष्ठान, दुर्गा पूजा आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।

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यह कलश विश्व ब्रह्मांड, विराट ब्रह्मा एवं भू-पिंड यानी ग्लोब का प्रतीक माना गया है। इसमें सम्पूर्ण देवता समाए हुए हैं। पूजन के दौरान कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है।

कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।

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कलश में भरा पवित्र जल इस बात का संकेत हैं कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही शीतल, स्वच्छ एवं निर्मल बना रहें। हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना एवं सरलता से भरे रहें। यह क्रोध, लोभ, मोह-माया, ईष्या और घृणा आदि कुत्सित भावनाओं से हमेशा दूर रहें।

कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क का चिह्न चार युगों का प्रतीक है। यह हमारी 4 अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है।

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पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मानव शरीर की कल्पना भी मिट्टी के कलश से की जाती है। इस शरीररूपी कलश में प्राणिरूपी जल विद्यमान है। जिस प्रकार प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक उसी प्रकार रिक्त कलश भी अशुभ माना जाता है।

इसी कारण कलश में दूध, पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है। इसे शांति का संदेशवाहक माना जाता है।

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