यह शब्द मूलत: संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। प्रिय अमृत- प्रियामृत अर्थात् जो प्रिय हो तथा अमर हो, ऐसे महापुरुषों को प्रियामृत कहा गया है।
आत्मा भी उपनिषदों अनुसार प्रिय तथा अमृत है। जो अमरता प्रदान करने में सहयोगी हो, उसे प्रियामृत कहते हैं। यह पिरामिड की भाषा वैज्ञानिक व्युत्पत्ति है।
पाश्चात्य शोधवेत्ताओं ने पिरामिड को कब्र या मकबरों के लिए बनाया गया ऐसा लिख दिया है, जो मनगढ़ंत है। पिरामिड के ऊपरी त्रिकोण के तीनों कोण काल के वर्तमान, भूत तथा भविष्य के प्रतीक हैं। लग्न वर्तमान का, पंचम भवन भविष्य का तथा नवम् भवन भूतकाल का है।
पिरामिडों की बाहरी संरचना ऐसी होती है कि उन पर मरुस्थलीय आंधियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उनमें निवास करने वाले मौसम की बदमिजाजी से सुरक्षित रहते थे।
पिरामिड के निर्माता वास्तुकार उस अंतरिक्षीय विज्ञान से परिचित थे जिससे इस विस्तृत ब्रह्मांड का चालन-नियमन होता है।
ग्रीक ग्रंथ के अनुसार वे लोग कुंडलिनी योग और चक्र के अस्तित्व को जानते और स्वीकारते थे। इस तरह पिरामिड को ध्यान, मंदिर, योग, तंत्र साधना केंद्र के रूप में स्वीकारा जाना चाहिए जिससे उन्नति व समृद्धि होती रहे।