श्रावण माह है व्रत का समय

श्रावण में व्रत से मिलता है मोक्ष

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जब सूर्य 'उत्तरायण' होता है तो तीर्थ और उत्सव का माहौल होता है। 'मकर संक्रांति' एक उत्सव है और जब सूर्य की दक्षिणायन गति होती है तो व्रतों का माहौल होता है। 'श्रावण माह' में व्रत किए जाते हैं।

कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में उल्लेखित चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सनातनी (हिंदू या आर्य) को कर्तव्यों के प्रति जागृत रहना चाहिए ऐसा ज्ञानीजनों का कहना है। कर्तव्यों का पालन करने से चित्त और घर में शांति मिलती है। चित्त और घर में शांति मिलने से मोक्ष व समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

कर्तव्यों के कई मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कारण और लाभ हैं। जो मनुष्य लाभ की दृष्‍टि से भी इन कर्तव्यों का पालन करता है वह भी अच्छाई के रास्ते पर आ ही जाता है। दुख है तो दुख से मुक्ति का उपाय भी कर्तव्य ही है। प्रमुख कर्तव्य निम्न है:- संध्योपासन, व्रत, तीर्थ, उत्सव, सेवा, दान, यज्ञ और संस्कार। यहां हम जानते हैं व्रत के महत्व को।

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व्रत को उपवास भी कह सकते हैं। अरबी में इसे रोजा और अंग्रेजी में फास्ट कहते हैं। हिंदू धर्म अनुसार श्रावण का पूरा माह व्रत-परहेज का होता है। इस दौरान व्यक्ति हर तरह के व्यसन, मांस भक्षण, सहवास आदि क्रियाओं से दूर रहकर शरीर और मन को पवित्र करता है।

व्रत ही तप है। यही उपवास है। इन व्रतों को कैसे और कब किया जाए, इसका अलग नियम है। नियम से हटकर जो मनमाने व्रत या उपवास करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। व्रत से जीवन में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं रहता। व्रत से ही मोक्ष प्राप्त किया जाता है। श्रावण माह के आगमन के साथ ही व्रत और तप का समय शुरू हो जाता है।

उपवास के प्रकार- 1. प्रात: उपवास 2. अद्धोपवास 3. एकाहारोपवास 4. रसोपवास 5. फलोपवास 6. दुग्धोपवास 7. तक्रोपवास 8. पूर्णोपवास 9. साप्ताहिक उपवास 10. लघु उपवास 11. कठोर उपवास 12. टूटे उपवास 13. दीर्घ उपवास।

प्रत्येक उपवास अलग-अलग मकसद के लिए किया जाता है और सभी के लाभ भी अलग-अलग होते हैं। आम जनता को उपवास के महत्व और मकसद को समझकर ही उपवास करना चाहिए। बिना तैयारी किए तथा बिना उपवास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए उक्त उपवास नहीं करना चाहिए। ( वेबदुनिया डेस्क)

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