हेमंत की सुंदर ऋतु और धर्म

आकाशदीप व दीपदान का महत्व

Webdunia
रविवार, 24 अक्टूबर 2010 (10:24 IST)
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22 अक्टूबर को शरद ऋतु की बिदाई हो गई है और 23 को हेमंत का आगमन हो गया है। नाथद्वारा सहित वैष्णव धर्म के मंदिरों में श्रीनाथजी को जहाँ गर्मी में मोगरे का श्रृंगार तथा चंदन का लेप किया जाता है, वहीं जाड़ों में रजाई ओढ़ाई जाती है तथा उनके भोग में केसर कस्तूरी तथा अन्य पोषक पाक होते हैं। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर।

दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। सर्दी आते ही क्या हितकर है इसका उपदेश हमारे यहाँ धर्मशास्त्र भी करते हैं और आयुर्वेद भी। स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी बातों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण तो होता ही है, धर्म उसे धार्मिक कर्तव्य के रूप में विहित कर देता है।

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हेमंत आगमन का धार्मिक महत्व : हेमंत ऋतु अर्थात् मार्गशीष और पौष मास में वृश्चिक और धनु राशियाँ संक्रमण करती हैं। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ेंगे। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार पड़ेंगे, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होगा।

इस माह में उज्जैन में महाकालेश्वर की दो सवारी कार्तिक और दो सवारी अगहन मास में निकलेगी। कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह होगा और चातुर्मास की समाप्ति होगी, तो बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन भी इसी मास में होगा। अगहन अर्थात् मार्गशीर्ष मास में गीता जयंती, दत्त जयंती, सोमवती अमावस्या के अलावा काल भैरव तथा आताल-पाताल भैरव की सवारी भी निकलेगी। पौष मास में हनुमान अष्टमी, पार्श्वनाथ जयंती आदि के अलावा रविवार को सूर्य उपासना का विशेष महत्व है।

ज्योतिषाचार्य आनंदशंकर व्यास के अनुसार हेमंत के साथ ही इस बाद कार्तिक मास का प्रारंभ हो रहा है। सूर्योदय के पहले ही श्रद्घाल ुओं क ो स्नान करना चाहि ए तथा पूरे मास में आकाशदीप व दीपदान का महत्व है।

( सौजन्य : नईदुनिया, उज्जै न)

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