रत्नों की खासियत और पहचान-3

हिंदुओं के रत्न, मुसलमानों के नगीने

Webdunia
- सुहेल वहीद
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मूँगे को उर्दू में मरजान कहते हैं। कुरान शरीफ में इसके गुणों की चर्चा सूरे रहमान में है। सारे रत्न पहाड़ों की खदानों से निकलते हैं लेकिन मूँगा समुद्र की तलहटी के पत्थरों से चिपटी हुई एक प्रकार की वनस्पति है जो पत्थर के आस-पास शहद के छत्ते की शक्ल की पैदा होती है। माना जाता है कि इसको पहनने से लकवा-फालिज नहीं होता।

शरीर में कंपन की बीमारी नहीं होने देता। लिवर और पाचन क्रिया को सुदृढ़ करता है। दिल की धड़कन को काबू में रखने के अलावा गठिया में भी फायदा पहुँचाता है। इसको धारण करने वाले को आर्थिक तंगी से भी नहीं जूझना पड़ता। हकीम जालीनूस ने लिखा है कि कट जाने पर शरीर से खून न रुक रहा हो तो मूँगे का पाउडर लगाने से तत्काल रुक जाता है।

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माणिक को अंग्रेजी में रूबी और उर्दू में याकूत कहते हैं। मशहूर इस्लामी स्कॉलर सैयद इब्राहीम सैफी ने लिखा है कि जब हजरत आदम को जन्नत से निकाला गया तो सबसे पहले उनका पैर श्रीलंका के सेरेनद्वीप पर पड़ा। उनके कदम मुबारक के छूने से याकूत पैदा हुआ। माणिक के प्याले में शराब डालकर पीने से उसकी तेजी और नशा लगभग खत्म हो जाता है।

कुछ मुस्लिम शहंशाहों के बारे में कहा जाता है कि वह याकूत के प्याले में ही शराब पीते थे क्योंकि इस्लाम में शराब नहीं नशे को हराम करार दिया गया है। राजा और शहंशाह इसी के बर्तनों में खाना भी खाते थे क्योंकि माणिक के बर्तन में जहर का असर नहीं होता।

कबूतर की आँख की पुतली में जो सुर्ख रंग होता है उस रंग का माणिक सबसे बेहतरीन माना जाता है। शादियों में इसकी अँगूठी बेहतरीन तोहफा माना जाता है। इसे धारण करने वाला किसी से भी ताल्लुकात बनाने में निपुण हो जाता है। दिमागी फिक्र और परेशानी भी दूर करता है। जिस्म में फुर्ती रहती है। मिर्गी, गठिया और प्लेग में फायदा पहुँचाता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि यह प्यास की शिद्दत को कम करता है।

मूँगा-मोती अल्लाह का वरदान :

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- कुरान शरीफ में मूँगा और मोती को अल्लाह की खास नेमतों (वरदान) में शुमार बताया गया है। इसे जन्नत की भी रहमत (आशीर्वाद) बताया गया है। कुरान की सूरे रहमान में आयत नंबर 22 में अल्लाह ने मरजान यानी मूँगे का जिक्र अपनी खास नेमतों में किया है। याकूत यानी माणिक की खूबसूरती और गुणों के बारे में भी सूरे रहमान की आयत नंबर 58 में जिक्र है।

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- यहूदी लोगों का प्रिय रत्न लहसुनिया और यशब हैं। लहसुनिया को अंग्रेजी में कैट्स आई और यशब को जेड कहते हैं।यह इस्राइल के लोकप्रिय रत्न हैं। यशब का जिक्र बाइबिल में भी आया है। माना जाता है कि यशब पहनने वाले पर दुश्मन का जोर नहीं चलता। जैसपर भी यहूदियों में खूब प्रचलित है। यह जेड की नस्ल का ही मुलायम रत्न है।

यहूदी रब्बी इन्हें इस्तेमाल करते आए हैं। उनके सीने पर जेड और जैसपर की प्लेटें लगी रहती थीं जिन पर उनके धर्म ग्रंथ के उद्धरण दर्ज होते थे। शिया मुसलमानों में भी जेड और जैसपर गले में पहनने का चलन है। शिया इस पर नादे अली और पंजतन पाक नक्श कराकर पहनते हैं।

- संगे सुलेमानी अंग्रेजी में अगेट के नाम से मशहूर है। मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों में इस पत्थर के धार्मिक महत्व को स्वीकार किया गया है।

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