पुष्य नक्षत्र को अन्य नामों जैसे तिष्य और अमरेज्य से भी जाना जाता है। इस नक्षत्र की उपस्थिति कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। 'अमरेज्य' का शाब्दिक अर्थ है, देवताओं के द्वारा पूजा जाने वाला। शनि इस नक्षत्र के स्वामी ग्रहों के रूप में मान्य हैं, लेकिन गुरु के गुणों से इसका साम्य कहीं अधिक बैठता है।
जब किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा इस नक्षत्र पर आता है, तो उस व्यक्ति में निम्नलिखित गुण दिखाई देते हैं- ब्राह्मणों और देवताओं की पूजा करने में अटूट विश्वास, धन-धान्य की संपन्नता, बुद्धिमत्ता, राजा या अधिकारियों का प्रिय होना, भाई-बंधुओं से युक्त होना। देखा जाए तो ये सभी गुण गुरु के हैं और यह इन बातों से सिद्ध भी होता है।
पहले गुण को देखें तो- गुरु देवताओं के गुरु है और एक ब्राह्मण ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसलिए देवताओं की पूजा एवं ब्राह्मणों का सम्मान इसके गुणों में सम्मिलित होगा ही। जहां तक धन-धान्य से संपन्नता का प्रश्न है, गुरु धन प्रदाता होता है। इस कारण से व्यक्ति धनवान होता है। बुद्धिमत्ता और अन्य गुण तो देवगुरु होने से निश्चित रूप से होंगे ही।
चूंकि विंशोत्तरी दशा में पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि को माना गया है, इसलिए नक्षत्र में शनि के गुण-दोषों को भी देखना जरूरी माना जाता है।
जिस जातक का जन्म शनियुक्त पुष्य नक्षत्र में होता है उसमें धर्मपरायणता, बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता, विचारशीलता, संयम, मितव्ययिता, आत्मनिर्भरता, गंभीरता, शांत प्रकृति, धैर्य, अंतर्मुखी प्रकृति, संपन्नता, पांडित्य, ज्ञान, सुंदरता और संतुष्टि होती है।
ऐसे जातक किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से करना पसंद करते हैं। लेकिन कभी-कभी ये शंकालु प्रवृत्ति वाले और कुसंगति में पड़ जाने वाले भी हो सकते हैं। इनके जीवन में 35 से 40 की उम्र अत्यंत उन्नतिकारक होती है। विवाह में कुछ विलंब हो सकता है और कई बार इन्हें अपने परिवार में कठिन परिस्थितियां भी देखना पड़ती हैं।
अच्छे प्रबंधन के कारण व्यवसाय में इन्हें निश्चित रूप से लाभ मिलता है। पर इनके लिए किसी गंभीर रोग की आशंका से इंकार नहीं किया सकता।
इस नक्षत्र में उत्पन्न स्त्रियां भी बहुत ही लजीली, शर्मीली और धीमे स्वर में वार्तालाप करने वाली होती हैं। दांपत्य जीवन में ऐसी स्त्रियों को कभी-कभी पति के संदेह का सामना करना पड़ सकता है।
पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है और नीलम शनि का रत्न है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति का जन्म पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में हुआ है, तो उसे नीलम धारण करने से लाभ होता है।
जिन जातकों की कुंडली में शनि शुभ भाव के स्वामी के रूप में हों, उनको नीलम धारण करने से बहुत लाभ होता है। यदि आप भी इस श्रेणी में आते हैं तो नीलम धारण करना आपके लिए शुभ होगा।
इसके लिए शनिवार को ही नीलम खरीदें, फिर उसे पंचधातु या स्टील की अंगूठी में जड़वाएं।
गंगा जल से उसकी शुद्धि के पश्चात- 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' शनि के मंत्र का जप करके सूर्यास्त से 1-2 घंटा पहले पहनें ।