पुष्य नक्षत्र

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
Devendra SharmaND
पुष्य नक्षत्र कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। इसे ज्योतिष्य और अमरेज्य'' भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है, देवताओं का पूज्य! वैसे तो इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है, पर इसके गुण गुरु के गुणों से अधिक मिलते हैं। चंद्रमा के इस नक्षत्र पर आने पर जातक के संबंध में कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति ब्राह्मणों और देवताओं की पूजा करने वाला, धनवान्‌, बुद्धिमान्‌, राजप्रिय और बंधुओं से युक्त होता है। वैसे यह सभी गुण गुरु के हैं।

गुरु स्वयं एक ब्राह्मण ग्रह है और देवताओं का गुरु है। उसमें देव ब्राह्मण भक्ति का होना स्वाभाविक है। गुरु धन का कारक है, अतः व्यक्ति धनवान होता है तथा देवगुरु होने से वो बुद्धिमान्‌ भी हुआ। इतना सब होने पर भी हमें इस नक्षत्र में शनि के ही गुण-दोषों को देखना होगा, क्योंकि विंशोत्तरी दशा पद्धति में पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि ही माना गया है। इसलिए शनियुक्त अर्थात्‌ पुष्य नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति संयमी, मितव्ययी, दूरदर्शी, बुद्धिमान्‌, आत्मनिर्भर, गंभीर, शांतचित्‌, धैर्यवान, अंतर्ध्यानी, विचारशील, धर्मपारायण, धनवान्‌, पंडित, ज्ञानी, सुंदर और सुखी होता है।

यह प्रत्येक कार्य योजनानुसार करने वाला होता है। यह संदेह करने वाला तथा बुरे मित्रों की संगत में पड़ जाने वाला होता है। 35 वर्ष के पश्चात्‌ यह बहुत उन्नति करता है। इसका विवाह कुछ देरी से होता है। अनेक अवसरों पर इसे पारिवारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय से इसे लाभ होता है तथा यह अच्छा प्रबंधक भी होता है। इसे किसी गंभीर रोग का सामना करना पड़ सकता है।
  पुष्य नक्षत्र कर्क राशि के 3-20 अंश से 16-40 अंश तक है। इसे ज्योतिष्य और अमरेज्य'' भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है, देवताओं का पूज्य! वैसे तो इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है, पर इसके गुण गुरु के गुणों से अधिक मिलते हैं।      


स्त्री जातक अत्यंत शर्मिली तथा बहुत धीमे बात करने वाली होती है। जीवन में कई बार यह पति की शंकाओं का शिकार बनती है।

पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मे उत्पन्न व्यक्ति को नीलम धारण करना चाहिए। इन नक्षत्रों का स्वामी ग्रह शनि है और नीलम शनि का रत्न है। इसलिए जिसकी जन्मकुंडली में शनि शुभ भाव का स्वामी हो, उसके लिए नीलम धारण करना लाभदायक है। शनिवार के दिन नीलम खरीदकर, पंचधातु या स्टील की अँगूठी में जड़वा कर, गंगाजल आदि से शुद्ध कर, शनि के निम्न मंत्र का जप करके सूर्यास्त से 1-2 घंटा पूर्व धारण करें। 'ओम्‌ शं शनैश्चराय नमः'।

नोट- नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुखराज और मूँगा कभी धारण नहीं करना चाहिए। नौकरी-व्यवसाय अथवा व्यापारिक कार्यों की सफलता के लिए, गृह शांति के लिए और पाप का नाश करने के लिए श्री भैरवजी की पूजा करें और नीलम, लोहा, फौलाद, चमड़ा, पत्थर, खेत, कौआ, माँस, अंगीठी, चिमटा, तवा, भैंस, सरसों का तेल और शराब आदि में से जिसे भी दान करने का सामर्थ्य हो, शनिवार के दिन किसी बूढ़े या निर्धन व्यक्ति को दान करें।

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