मूल नक्षत्र : मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है, वहीं राशि स्वामी गुरु है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर केतु और गुरु का प्रभाव जीवनभर रहता है। केतु जहां नकारात्मक घटनाओं को जन्म देता हैं, वहीं गुरु जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। धनु राशि का स्वामी गुरु है तो जातक को चाहिए कि वह धर्मपरायण और विष्णु, हनुमान भक्त बना रहे इसी में उसकी भलाई है।
* प्रतीक : अंकुश
* वृक्ष : साल का पेड़
* देव : निरित्ती (निवृत्ती देवी)
* रंग : बादामी पीला
* अक्षर : य, ये, ब, भा, भी
* नक्षत्र स्वामी : केतु
* राशि स्वामी : गुरु
* शारीरिक गठन : आकर्षक स्वरूप और छरहरा बदन।
* भौतिक सुख : चरित्र उत्तम तो सभी तरह का सुख मिलेगा।
सकारात्मक पक्ष : मूल नक्षत्र के जातक अपने विचारों पर दृढ़ होते हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होते हैं। ये खोजी बुद्धि के होते हैं। शोधकार्य में सफलता मिल सकती है। ये कुशल और निपुण व्यक्ति होने के साथ- साथ उत्कृष्ट वक्ता भी होते हैं। ये डॉक्टर या उपचारक भी हो सकते हैं। ये भावुक प्रवृत्ति के होने के कारण दयालु और सभी का भला करने वाले भी होते हैं।
नकारात्मक पक्ष : यदि केतु और गुरु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ये बेहद जिद्दी किस्म के हो जाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। इनकी विनाशकारी कार्यों में रुचि बढ़ जाती है। ऐसे में इनके गलत मार्ग पर चलने के खतरे भी बढ़ जाते हैं। इनमें ईर्ष्या की भावना प्रबल हो जाती है। ये अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ये तंत्र-मंत्र या पारलौकिक विद्या के चक्कर में पड़कर अपना करियर बर्बाद कर लेते हैं। इनके पैरों में हमेशा तकलीफ बनी रह सकती है। यदि ऐसा जातक माता-पिता का कहना मानते हुए विष्णु या हनुमानजी की शरण में रहे, तो सभी तरह की मुसीबतों से बच सकता है।
प्रस्तुति - शतायु