केतु प्रधान व्यक्ति उदासीन होते हैं

केतु संन्यास, त्याग, उपासना का कारक

भारती पंडित
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क्या आपके आसपास कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं? कोई वस्तु उन्हें प्रभावित नहीं करती? सदैव अवसाद और निराशा से घिरे रहते हैं? तो निश्चित ही इन व्यक्तियों की कुंडली में लग्न पर केतु का अत्यधिक प्रभाव होता है।

केतु मूलत: उदासीनता का कारक है। इसके प्रभाव से व्यक्ति चैतन्यहीन बन जाता है। इसकी महत्वाकांक्षाएँ सुप्त होती हैं। हँसी कभी-कभी वह भी मुश्किल से ही दिखाई देगी। बातों में सदैव निराशा झलकेगी।

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केतु वास्तव में संन्यास, त्याग, उपासना का भी कारक है। केतु व्यक्ति को विरक्ति देता है। व्यय स्थान का केतु मोक्षदायक माना जाता है। यदि कुंडली में केतु सूर्य के साथ हो तो मन में आशंकाएँ बनी रहती हैं, मंगल के साथ हो तो काम टालने की प्रवृत्ति देता है, शुक्र युक्त हो तो विवाह संबंधों में उदासीनता, गुरु के साथ हो तो वैराग्य, स्वप्न सूचनाएँ देता है। बुध के साथ वाणी दोष व चंद्र के साथ निराशा, अवसाद का कारक बनता है।

ऐसे व्यक्तियों में केतु की महादशा में विरक्ति होने लगती है। शारीरिक स्वास्थ्‍य बिगड़ता है। अपनी महत्वाकांक्षाएँ व्यक्ति स्वयं मारता है और आध्यात्म-उपासना-वैराग्य की तरफ झुकाव होने लगता है।

केतु प्रधान व्यक्तियों की छठी इंद्रिय जल्दी जाग्रत हो सकती है। योग्य गुरु का मार्गदर्शन इनके जीवन की दिशा बदल सकता है। केतु के लिए गणेश जी की आराधना करना व गुरु की शरण में जाना उपयोगी सिद्ध होता है।
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