केतु

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केतु की महादशा सात वर्ष की होती है। इसके अधिदेवता चित्रकेतु तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु अशुभ स्थान में रहता है तो वह अनिष्टकारी हो जाता है। अनिष्टकारी केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। नवग्रह मंडल में केतु का प्रतीक वायव्य कोण में काला ध्वज है।

केतु ग्रह का स्वरू प
* केतु की दो भुजाएँ हैं।
* वे अपने सिर पर मुकुट तथा शरीर पर काला वस्त्र धारण करते हैं।
* केतु का शरीर धूम्रवर्ण तथा मुख विकृत है।
* वे अपने एक हाथ में गदा और दूसरे में वरमुद्रा धारण किए रहते हैं।
* केतु का वाहन गिद्ध है।

केतु ग्रह जन्मकथ ा
मुद्रमंथन के बाद जिस समय भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु देवताओं का वेष बनाकर उनके बीच में आ बैठा और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया। परंतु तत्क्षण ही उसकी असलियत बता दी।

अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान ने अपने तीक्ष्ण धारवाले सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। केतु राहु का ही कबन्ध है। राहु के साथ केतु भी ग्रह बन गया। मत्स्यपुराण के अनुसार केतु बहुत से हैं, उनमें धूमकेतु प्रधान है।

केतु ग्रह की विशेषत ा
भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह छायाग्रह है। व्यक्ति के जीवन-क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को यह प्रभावित करता है। राहु की अपेक्षा केतु विशेष सौम्य तथा व्यक्ति के लिए हितकारी हैं। विशेष परिस्थितियों में केतु व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुँचा देता है। केतु का मंडल ध्वजाकार माना गया है। कदाचित यही कारण है कि यह आकाश में लहराती ध्वजा के समान दिखाई देता है। इसका माप केवल छः अँगुल है।

राहु-केतु का मूल शरीर एक था, जो दानव-जाति का था। पुनर्जन्म के बाद नए गोत्र के आधार पर राहु पैठीनस-गोत्र तथा केतु जैमिनि-गोत्र का सदस्य माना गया। केतु की प्रतिकूलता से दाद, खाज तथा कुष्ठ जैसे रोग होते हैं।

केतु ग्रह शांति उपा य
केतु की प्रसन्नता हेतु दान की जाने वाली वस्तुएँ इस प्रकार बताई गई हैं-

वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत्‌।
शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै ॥

वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कंबल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है।

केतु शांति हेतु लहसुनिया पत्थर धारण करने का विधान है। इनकी शांति हेतु मृत्युंजय-जप भी किया जाता है।

केतु ग्रह उपासना मंत् र
केतु ग्रह की उपासना के लिए निम्न में किसी एक अथवा सभी का नित्य श्रद्धापूर्वक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय रात्रि तथा कुल जप-संख्या 17000 है। हवन के लिए कुश का उपयोग करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में विद्वान ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिए।

वैदिक मंत्र-
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथाः॥

बीज मंत्र-
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्‌।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्‌॥

बीज मंत्र-
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।

सामान्य मंत्र-
ॐ कें केतवे नमः।

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