क्या फल देंगे वक्री मंगल

शुभ फलदायक हो सकते हैं वक्री मंगल

भारती पंडित
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वर्तमान में मंगल ग्रह नीच राशि कर्क में गतिमान हो रहे हैं। 25 दिसंबर से ये वक्री हो गए हैं। वक्री ग्रह की चाल धीमी हो जाती है। अत: उसका बल बढ़ जाता है। ऐसे में मंगल का नीचस्थ गोचर जिन राशियों के लिए पहले ही मुश्किलें बढ़ा रहा था, उनके लिए और परेशानी खड़ी कर सकता है।

गोचर ज्योतिष के हिसाब से मंगल जब-जब राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में आता है तब योग्य व शुभ फलदायक होता है। जबकि प्रथम, दूसरे, चौथे, पाँचवे, आठवें, नौवे व व्यय भाव में आने पर यह हानि करता है। ऐसे में उन राशियों के लिए नीच का मंगल, वक्री होने से और म‍ुश्किलें बढ़ाने वाला है।

शुभ प्रभाव की बात करें तो वृषभ, कुंभ, तुला एवं कन्या राशि के लिए मंगल क्रमश: तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें होने से लाभकारक है व क्रमश: तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें होने से लाभकारक है व क्रमश: पराक्रम वृद्धि, सफलता, धनलाभ व शत्रु विजय, राज्य पक्ष से लाभ, भूमि लाभ व लोकप्रियता ये सारे लाभ लेकर आएँगे।

पहले नीचस्थ होने के कारण इन प्रभावों में कभी अनुभूत हो रही थी। अब मंगल का बल बढ़ने से ये सारे प्रभाव अनुभूत होंगे।

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मगर दूसरी ओर जिन राशियों के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व व्यय भाव से मंगल गमन कर रहे हैं। (कर्क, मिथुन, मेष, मकर, धनु, सिंह, मीन) उनके लिए मंगल हानिकारक ही थे मगर इनके अशुभ फल मंगल के नीचस्थ होने से कम अनुभूत हो रहे थे। अब वक्री मंगल होने से अशुभ फल महसूस हो सकते हैं। विशेषकर मेष राशि वाले स्थानांतरण, उदर विकार, राज्य पक्ष से कष्ट व जीवनसाथी को स्वास्थ्‍य कष्ट महसूस करेंगे। धनु रा‍शि वाले कार्य बाधा, धन हानि, शत्रु से परेशानी व भाई-मित्रों से विवाद का भय महूसस करेंगे। सिंह राशि वाले शारीरिक कष्‍ट, डिप्रेशन, पत्नी को कष्ट, कार्य बाधा तीव्रता से महसूस करेंगे।

मीन, कर्क, मकर व मिथुन राशि के व्यक्ति आत्मबल में कमी, वाणी की कटुता से नुकसान, आर्थिक हानि व असंतोष अनुभव करेंगे।

हालाँकि जिन राशियों को गोचर के गुरु का शुभ दृष्टि लाभ या स्थान लाभ मिल रहा है, उनके अशुभ फलों में कमी होगी। फिर भी प्रतिकूल मंगल हेतु उपाय

1. हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएँ, बंदरों को गुड़-चने खिलाएँ।
2. बहते पानी में गुड़ बहाएँ।
3. भाई-बहनों को वस्त्र उपहार में दें।
4. रक्तदान करें।
5. माँस व मदिरा, धूम्रपान से परहेज रखें।
6. इष्ट का ध्यान व गुरु की सेवा करें।
7. ऊँ हं हनुमंताय नम: का पाठ करें।

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