गोचर बुध का चंद्रराशि से फल

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- भगवान पुरोहित

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बुध ग्रह उत्तर दिशा का स्वामी, नपुंसक, त्रिदोष प्रवृत्ति, श्याम वर्ण व पृथ्वी तत्व का है। यह पाप ग्रहों सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु के साथ या उनकी राशि पर रहने पर अशुभ फल और शुभ ग्रहों पूर्ण चंद्रमा, गुरु, शुक्र के साथ रहने पर शुभ फल देता है।

बुध ग्रह पंचम और दशम स्थान में कारक, चतुर्थ स्थान में निष्फल होता है। इससे जिव्हा, तालु, उच्चारण अवयवों एवं वाणी दोष, गुप्त रोग, संग्रहणी, बुद्धि भ्रम, मूक, आलस्य, वात रोग, श्वेत कुष्ठ आदि रोगों का विचार होता है। पन्ना एवं उप रत्न, हरित बुध ग्रह के शुभाशुभ फल हेतु धारण करना चाहिए।

बुध ग्रह 32वें वर्ष में जातक का भाग्योदय करता है। राजस गुणधारी बुध प्रातः में कालबली व 7वें स्थान पर पूर्ण दृष्टि डालता है। इसके सूर्य, शुक्र, राहु मित्र ग्रह, मंगल सम तथा गुरु-शनि शत्रु ग्रह होते हैं। यह मिथुन-कन्या पर स्वग्रही, कन्या राशि के 15 अंश तक उच्च का तथा मीन राशि पर नीच का रहता है।

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यह स्वराशि, उच्च राशि, वृषभ, तुला, मकर, कुंभ, सिंह राशि में शुभ फल देता है। बुध हमेशा सूर्य से अधिकतम 30 अंश के आगे-पीछे या प्रायः साथ ही रहता है। सूर्य के साथ बिना अस्त के बुध से बुध-आदित्य एक शुभ योग बनता है, जिससे जातक विद्वान, विद्यावान एवं ऐश्वर्यवान होता है।

भृगु सूत्र के अनुसार बुध के शुभ होने पर जातक विद्यावान, विनय सिंधु, नाना शास्त्रों का ज्ञाता, भ्रमणशील यंत्र-तंत्र-मंत्र का ज्ञाता, प्रिय मधुर भाषी, क्षमाशील, दयालु होता है। 27 वें वर्ष में लंबी यात्राएँ करता है। पाप ग्रहयुक्त होने पर पांडु रोग होता है। शुभ ग्रहों से दृष्ट बुध से जातक निरोग, उच्च बुध से मोक्ष प्राप्त करता है।

अशुभ बुध से जातक रोगी, कपटी, पंगु, धोखेबाज व भ्राता विरोधी होता है। चंद्र कुंडली में गोचर बुध से 2 /4/6/8/10/11 शुभ होने से भाग्योदय, धनलाभ तथा सब सुख मिलते हैं। 1 /3/5/7/9/12 स्थानों पर गोचर बुध वेध होने से अशुभ फल देता है। गोचर बुध एक राशि में एक माह भ्रमण करता है।

प्रथम स्थान में वैध होने से मन में संघर्ष, लाभ में कमी, अप्रिय वाणी, संस्कार, विवाह में बाधक, व्यापार, धंधे में हानि, कुटुम्ब में क्लेश, मित्रों से विरोध, व्यर्थ का प्रवास आदि फल मिलते हैं।
द्वितीय स्थान में शुभ बुध से वाणी में मधुरता, रोजगार-धंधे में लाभ, सफलता व सुख मिलते हैं। परंतु अशुभ दृष्टिगत होने पर अपयश, कलंक, दुख एवं मुकदमेबाजी में फँसते हैं।
तीसरे स्थान में गोचर बुध वेध होने से भय, असहयोग, शत्रु भय, कष्ट, कुशंकाएँ, अधिकारी की नाराजगी रहती है।
चौथे स्थान में गोचर बुध शुभ होने से पारिवारिक मतभेद का निराकरण, मन में प्रसन्नता व मनोरोग से मुक्ति होती है।
पाँचवें स्थान में वेध बुध का बुद्धि, विद्वता, तर्क विशेष स्थान होने से वाणी असंयम, निर्णय में चूक, परिश्रम की निष्फलता, संतान विरोध-मतभेद, अपयश एवं संबंधों में दरारें पड़ती हैं।
छठवें स्थान पर गोचर बुध शुभ होने से प्रगति की स्थितियाँ अवसर, प्रयास से सफलता, प्रसिद्धि, यश, धनलाभ एवं शत्रु पर विजय होती है।
सातवें स्थान पर गोचर वेध होने से व्यक्ति शंकाशील, प्रलोभन से हानि, मनः अशांति, काम की अधिकता, पत्नी-संतान से विरोध, क्रोध से कलह तथा चालू धंधे में बाधाएँ आती हैं।
आठवें स्थान में बुध शुभ होने से अपरिचित से लाभ, लाभकारी यात्रा, गूढ़ विद्या-ज्ञान, पुत्र प्राप्ति योग, धन लाभ, साझेदारी में लाभ, समाज में प्रतिष्ठा व चालू कार्य में सफलता मिलती है।
नवम स्थान में गोचर बुध वेध होने से भाग्य में कमी, परिजनों, सगे-संबंधी से मतभेद, बिगाड़, कार्य में विघ्न, मानहानि व मन में विचलन, कुशंका बनी रहती है।
दसवें बुध शुभ होने से हर्ष, कर्म में सफलता, संपत्ति, जायदाद, प्राप्ति गृहस्थी, परिवार के लिए शुभ, स्वस्थता, शुभ कार्य, पिता की कृपा, नौकरी में सफलता मिलती है।
ग्यारहवें स्थान में गोचर बुध शुभ होने से उत्तम स्वास्थ्य प्रगति, कौटुम्बिक सुख, गृहस्थी में आनंद एवं धार्मिक शुभ कार्य संपन्न होते हैं। बारहवें स्थान में गोचर बुध वेध होने पर धन हानि, व्ययाधिकता, शत्रु से मात, लोक निंदा, मानहानि, भय, गुप्त षड्यंत्र, शारीरिक पीड़ा तथा समय की प्रतिकूलता रहती है।

यदि शुभ बुध शुभ ग्रहों के साथ गोचर में भ्रमण करता है तो शुभ फलों में वृद्धि होती है। राहु से युति के समय बौद्धिक प्रगति होती है। गोचर बुध का शुभाशुभ फल का निर्णय करते समय जन्म कुंडली में बुध की स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। जब बुध अशुभ भ्रमण कर रहा है तो बुध के बीज मंत्र की एक माला का प्रतिदिन अवश्य जाप करें- ॐ ब्रां ब्रीं ब्रूं सः बुधाय नमः। या 11बार इस मंत्र का जाप करें-

प्रियं गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमंबुधं।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तंबुध प्रणमाभ्यहम्‌॥
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