ग्रहों का आपसी तालमेल

खुशहाल दाम्पत्य का आधार

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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कौन कहता है कि ग्रहों का मानव जी‍वन पर प्रभाव नहीं पड़ता? जो लोग ग्रहों की महत्ता को नहीं मानते वे भी आगे चलकर किसी न किसी तरह अपने भविष्य के बारे में जानने के इच्छुक होते हैं। सर्वप्रथम लग्न जो स्वयं को दर्शाता है फिर सप्तम जो अपने जीवनसाथी का भाव होता है। चतुर्थ भाव स्वयं के परिवार का, पंचम भाव प्रेम का तो नवम भाव भाग्य का होता है।

द्विती य भा व क ो भ ी नजरअंदा ज नही ं करन ा चाहिए । य ह वाण ी और स्त्री की कुंडली में सौभाग्य को दर्शाता है। पुरुष की कुंडली में अष्टम भाव स्त्री के धनभाव को दर्शाता है। इन सबको जानकर जीवनसाथी मिल जाए तो जीवन खुशी से बीत जाए। आइए अब ग्रहों के बारे में जानें-

द्वितीय भाव वाणी का होता है। सबसे पहले अपने जीवनसाथी की वाणी जाँच लेना होगा कि उसकी बोली में मिठास है या नहीं। द्वितीय भाव में नीच का केतु नहीं होना चाहिए। सूर्य, शनि भी न हो तो वाणी में दोष होगा। मंगल-‍शनि का होना इस भाव में स्त्री की कुंडली में सौभाग्य को क्षति पहुँचाता है।
  कौन कहता है कि ग्रहों का मानव जी‍वन पर प्रभाव नहीं पड़ता? जो लोग ग्रहों की महत्ता को नहीं मानते वे भी आगे चलकर किसी न किसी तरह अपने भविष्य के बारे में जानने के इच्छुक होते हैं। सर्वप्रथम लग्न जो स्वयं को दर्शाता है।      


जिस प्रकार मांगलिक कुंडली का दोष अन्य भावों में होता है, उसी प्रकार द्वितीय भाव भी इससे अछूता नहीं रहता। नीच का राहु भी इस भाव में वाणी को दूषित कर देता है। चंद्र-राहु की स्थिति भी ठीक नहीं रहती। इस भाव में शुक्र या गुरु स्वराशि के हों या उच्च के, गुरु-चंद्र साथ होने पर उस जातक की वाणी में ईमानदारिता, सप्ष्टता व मधुरता होती है।

मंगल स्वराशि का हो तो वाणी कड़क होगी। बुध हो तो वणिक प्रवृत्ति की भाषा होगी। सूर्य हो तो तेजस्वी वाणी होगी व प्रभावशाली वक्ता भी होगा। शुक्र-चंद्र साथ हो तो कलात्मक भाषा बोलने वाला, मनोविनोदी स्वभाव का प्रेमी भी होगा।

चंद्र, मंगल साथ हो तो नरम-गरम वाणी बोलने वाला होगा। गुरु-चंद्र-मंगल हो तो श्रेष्ठ वक्ता और न्याय के प्रति बोलने वाला होगा। शनि-चंद्र साथ हो तो उसकी वाणी अध्यात्मवादी होगी। ऐसा जातक सोच-विचारकर बोलने वाला भी होता है ।

लग्न से स्वयं के बारे में जाना जाता है। यदि लग्न में केतु हो तो प्रभावशाली, भारी आवाज वाला, जिद्दी स्वभाव होगा। केतु-मंगल साथ हों तो बहुत हठी होता है। चंद्र लग्न में हो तो प्रेमी, मधुर स्वभाववाला होता है। उच्च का चंद्र हो तो सम्मोहक, सुंदर चितवन वाला होता है। लग्न में नीच का राहु व नीच के ग्रह नहीं होना चाहिए। सप्तमेश का संबंध लग्नेश से हो तो अपने जीवनसाथी को चाहने वाला होता है। सप्तमेश लग्न में लग्नेश सप्तम में हो तो ऐसा जातक अपने जीवनसाथी नहीं रहता। दिलोजान से चाहने वाला होता है ।

लग्नेश सप्तमेश में आपसी बैर नहीं होना चाहिए नहीं तो आपस में नहीं बनेगी। लग्नेश का संबंध या दृष्टि संबंध सप्तम से शुभ हो तो जीवनसाथी से खूब अच्छी बनती है। फिर गुण मिलें या न मिलें।

मेष लग्न वालों के लिए सिंह, धनु, वृषभ के लिए कन्या, मकर, वृश्चिक, मिथुन वालों के लिए तुला-कुंभ वाले, कर्क के‍ लिए वृश्चिक, मीन-मकर वाले, सिंह के लिए धनु-मेष वाले, कन्या के लिए मकर-मिथुन-वृषभ वाले, तुला के लिए कुंभ-मिथुन वाले, वृश्चिक के लिए मीन-कर्क वाले, धनु के लिए मेष, सिंह, मिथुन, मकर के लिए वृषभ, कन्या, कर्क वाले, कुंभ के लिए मिथुन-तुला व मीन लग्न वालों के लिए कर्क, वृश्चिक या कन्या लग्न वाले उत्तम जीवनसाथी होंगे ।

चतुर्थ भाव जितना ‍शुभ होगा उतना पारिवारिक जीवन सुखी रहेगा। इससे शनि-मंगल या दृष्टि संबंध नहीं होना चाहिए। सूर्य-चंद्र, सूर्य-राहु, चंद्र-राहु, गुरु-राहु की स्थिति न हो नवम भाव भी शुभ हो व नमेश भी शुभ ग्रहों से संबंध रखता हो। पंचम भाव प्रेम का होता है। वही संतान, विद्या, मनोरंजन का भाव होता है। इस भाव का शुभ होना व इसके स्वामी की शुभ स्थिति उत्तम होती है। इस भाव में नीच का राहु, शुक्र-केतु, शनि-मंगल, सूर्य-चंद्र न हों।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखा जाए तो आपका आपसी तालमेल अच्छा रहेगा। इससे जीवन, परिवार, संतान आदि सुखी रहेगी। दाम्पत्य जीवन मधुर बनेगा। यही सुखी परिवार का आधार होता है।
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