ग्रहों के विशिष्ट योग

भारती पंडित
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कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुरूप मनीषियों ने इन्हें विशिष्ट योगों के नाम दिए हैं।

1. युति : दो ग्रह एक ही राशि में एक सी डिग्री के हों तो युति कहलाती है। अशुभ ग्रहों की युति अशुभ फल व शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है। अशुभ व शुभ ग्रह की युति भी अशुभ फल ही देती है।

2. लाभ योग : एक ग्रह दूसरे से 60 डिग्री पर हो या तीसरे स्थान में हो तो लाभ योग होता है। यह शुभ माना जाता है।

3. केंद्र योग : दो ग्रह एक दूसरे से 90 डिग्री पर हो या चौथे व 10वें स्थान पर हो तो केंद्र योग होता है। यह योग शुभ होता है।

4. षडाष्टक योग : दो ग्रह 150 डिग्री के अंतर पर हो या एक दूसरे से 6 या8 वें स्थान में हों तो षडाष्टक दोष या योग होता है। यह कष्‍टकारी होता है।

5. नवपंचम योग : दो ग्रह एक दूसरे से 120 डिग्री पर अर्थात पाँचवें व नवें स्थान पर समान अंश में हो तो यह योग होता है। यह अति शुभ माना जाता है जैसे सिंह राशि का मंगल और धनु राशि का गुरु -

6. प्रतियुति : इसमें दो ग्रह 180 डिग्री पर अर्थात एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए इसके प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं।

7. अन्योन्य योग : जब ग्रह एक दूसरे की राशि में हो तो यह योग बनता है। (जैसे वृषभ का मंगल और वृश्चिक का शुक्र) इसके भी शुभ फल होते हैं।

8. पापकर्तरी योग : किसी ग्रह के आजू-बाजू (दूसरे व व्यय में) पापग्रह हो तो यह योग बनता है। यह बेहद अशुभ होता है।

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