ग्रह बताएँ रोग

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- भारती पंडित

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पहला सुख निरोगी काया होता है। बीमारी एक ऐसी विपत्ति है जिसे न केवल सहने वाला दु:खी होता है वरन सारा परिवार उससे प्रभावित हो जाता है। रोगों के अध्ययन में छठा प्रमुख भाव मु‍ख्य रूप से अध्ययन में लिया जाता है। छठे, आठवें, बारहवें भाव के स्वामी भी स्थान हानि करते हैं ।

सदा रोगी रखने वाले यो ग
· ग्यारहवें स्थान का स्वामी छठे स्थान से निर्बल होकर पड़ा हो ।
· शनि पाँचवें, नौवें या बारहवें घर में हो व उसके साथ पाप ग्रह हों या पाप ग्रहों की दृष्टि हो ।
· आठवें स्थान का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो ।
· लग्नेश निर्बल हो, छठे स्थान में शनि-मंगल और बारहवें स्थान में सूर्य हो।
  पहला सुख निरोगी काया होता है। बीमारी एक ऐसी विपत्ति है जिसे न केवल सहने वाला दु:खी होता है वरन सारा परिवार उससे प्रभावित हो जाता है। रोगों के अध्ययन में छठा प्रमुख भाव मु‍ख्य रूप से अध्ययन में लिया जाता है।      



अन्य रोगों के संके त
· छठे स्थान का स्वामी पाप ग्रहों के साथ आठवें स्थान में बैठे तो शरीर में फोड़े-फुंसियाँ होती हैं ।
· दशम स्थान में शनि-मंगल हों या सूर्य, शुक्र, शनि पाँचवें घर में हो या छठे-सातवें घर में कई पाप ग्रह हों, शुक्र नीच या निर्बल हो तो मूत्राशय-जननेन्द्रिय संबंधी रोग होते हैं ।
· चंद्र-राहु आठवें स्थान में हों या शनि-मंगल छठे-आठवें में हों या लग्न में सूर्य-चंद्र-मंगल-राहु की दृष्टि में होने पर मिर्गी या हिस्टीरिया रोग होता है ।
· निर्बल गुरु बारहवें भाव में हो या छठे स्थान का स्वामी बुध और मंगल के साथ सातवें या पाँचवें स्थान में हो तो गुप्त रोग होने की आशंका होती है ।
· बुध छठे या व्यय स्थान में हो तो त्वचा के रोग होते हैं ।
· चंद्रमा छठे भाव में हो, नीच राशि में हो तो साँस, गले, वाणी के रोग होते हैं ।
· सूर्य की लग्न, दूसरे या बारहवें भाव पर दृष्टि नेत्ररोग देती है ।
· मंगल की लग्न पर दृष्टि होने या लग्न में उपस्थित होने से दाँतों के रोग होते हैं ।
· गुरु का छठे-आठवें-बारहवें होना लीवर-पेट के रोग देता है। राहु भी निर्बल होने (पाँचवें भाव में) पर पेट रोग देता है।

कुंडली में रोगसूचक योग होने पर भी यदि व्यक्ति आचार-विचार और आहार में संयमी रहे तो ग्रहों के दोष कम जाते हैं। अनिष्टकारी ग्रहों के प्रभाव को कम करने वाले पदार्थों का सेवन करने से रोगों से बचाव किया जा सकता है।
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