हँसी-खुशी, हर्षोल्लास जीवन में सभी के साथ एक न एक दिन आता ही रहता है, लेकिन ये स्थिति कब-कब आती है, जीवन में ग्रह भी कुछ देते हैं संकेत। इसके लिए चन्द्रमा जो मन का कारक है, उसका शुभ होना ही आवश्यक होता है। शुक्र का भी इसमें अहम स्थान होता है। लग्न स्वयं के बारे में बताता है। वहीं वाणी का भाव द्वितीय भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। चतुर्थ भाव परिवार का व पंचम भाव प्रेम का होता है। इन सबका शुभ होना ही जीवन में हर्षोल्लास के लिए प्रभावी होता है।
लग्न कोई भी हो उसका शुभ होना आवश्यक है। यदि वृषभ, तुला हो तो उसका स्वामी शुक्र होगा। इसकी स्थिति स्वराशिस्थ हो या मित्र का हो या उच्च का होना चाहिए, तो मन प्रसन्न रहता है। इसके साथ चन्द्र का भी शुभ होना आवश्यक है, क्योंकि चन्द्र मन का कारक होता है। इसकी शुभ स्थिति वृषभ स्वराशि कर्क जलतत्व राशि के साथ मीन व वृश्चिक राशि भी जलतत्व प्रधान होती है लेकिन एक राशि वृश्चिक नीच की होती है। इसमें चन्द्र की शुभ स्थिति नहीं मानी जाती। बाकी सभी अनुकूल मानी गई हैं।
इसी प्रकार कर्क लग्न हो या मीन लग्न हो व इनमें चन्द्र हो व शुक्र की शुभ स्थिति हो तो जातक का मन प्रसन्न रहता है। द्वितीय भाव वाणी का है। यदि वाणी कठोर है तो किसी को प्रभावित नहीं कर सकती न ही सुकून दे सकती है। अतः द्वितीय भाव का अशुभरहित होना आवश्यक है।
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इस भाव में शनि, मंगल न हो न ही राहु हो। सूर्य के साथ भी अशुभ ग्रह नहीं होना चाहिए। चतुर्थ भाव परिवार से संबंध रखता है। यदि यह घर अशुभ भाव से ग्रस्त हो, अशांति रहेगी, तो खुशियाँ कहाँ रहेंगी। इस भाव में कोई भी अशुभ ग्रह नहीं होना चाहिए। न ही अशुभ ग्रह उसे देखता हो। पंचम भाव मनोरंजन, प्रेम, विद्या, बुद्धि का होता है। इस भाव का शुभ होना ही उत्तम रहता है। इस भाव में शुभ ग्रह ही होना चाहिए।
शुक्र स्वराशि का हो या मित्र राशि का हो, उच्च का नहीं होना चाहिए, क्योंकि यहाँ से एकादश भाव आय पर नीच दृष्टि जो पड़ेगी। जब आय नहीं तो खुशियाँ कैसी! जब-जब ग्रहों कि स्थिति उपर्युक्त हो व दशा-अन्तरदशा भी शुभ ग्रहों की हो तो खुशियाँ अवश्य मिलती हैं। इस प्रकार हम जान सकते हैं कि ग्रह की शुभ स्थिति हर्षोल्लास में सहायक होती है।