Dharma Sangrah

बुध ग्रह की औषधियाँ

- पंडित आर. के. राय

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बुध सौर मंडल का चौथा ग्रह है। इसे चन्द्रमा का पुत्र कहा गया है। यह हमेशा शिशु ही रहता है। इसीलिए इसे अस्त होने का दोष नहीं लगता है। चन्द्रमा का पुत्र होने के कारण इसके स्वभाव में शीतलता एवं कोमलता स्वाभाविक है। सौम्य एवं निश्छल होने के कारण इसका अशुभ प्रभाव न के बराबर ही होता है। बचपना होने के कारण यह सहज ही अन्य ग्रहों के प्रभाव में आ जाता है। किन्तु इसका स्वयं का प्रभाव अन्य किसी ग्रह पर नहीं पड़ता है। केवल डरावनी वस्तुओं से इसे घृणा है।

सिर कटे ग्रह- राहु से इसे बहुत घृणा है। इसीलिए यह राहु के समस्त अशुभ प्रभाव को दूर कर देता है। कहा भी गया है- 'राहु दोषो बुधो हन्यात्‌।' किन्तु बालहठ की तरह यदि जिद पर आ गया तो बिना अपनी मन वाली किए शान्त भी नहीं होने वाला। अर्थात् यदि अशुभ अवस्था में पीड़ित हो गया तो बहुत ही उग्र पीड़ा एवं कष्ट देता है।

विविध ग्रन्थों में इसकी शान्ति हेतु निम्न औषधियों का उल्लेख आता है :-
' अजभुक्‌ दाड़िम्‌ शतावर्यो ब्रीहनीह शिखरोदयी च। स्वजबीडोम्बरोप्पस्थैतत्‌ज्ञशान्तिम्‌ खलु प्रयच्छते॥'

1. अजभुक- यद्यपि अजभुक को बकरी के भोजन से तात्पर्य लिया गया है। किन्तु यह उचित नहीं है। कारण यह है कि बकरी तो घास भी खाती है तथा पत्ते भी खाती है। इसीलिए 'बृहद्वावरी' में इसे स्पष्ट किया गया है कि यह वह जंगली नाशपति है जिसे अजमुख अर्थात दक्ष प्रजापति भोग के लिए प्रयुक्त करते थे।

इसका रंग हरा, आकार गोल, स्वाद खट्टा-मीठा, वजन में हल्का, पत्ते खुरदरे एवं गोल, वृक्ष का तना बृहदाकार एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में लग्न में बुध अशुभ अथवा पीड़ित हो तथा रोग एवं अपमान आदि से हमेशा कष्ट होता हो तो इस वनस्पति का प्रयोग करे।

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2. दाड़िम- इसे सभी जानते हैं। इसे अनार भी कहा जाता है। इसके बीज लाल रंग के तथा दाँत की आकृति के होते हैं। इसके बीज ही खाने के काम में लाए जाते हैं। यह बहुत ही रसीला होता है। जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध दूसरे भाव में अशुभ स्थिति में हो अथवा जिसकी वाणी विकृत हो, हकला कर बोलता हो, धन स्थिर नहीं रह पाता हों या पारिवारिक झंझट हो उसे दाड़िम का प्रयोग करना चाहिए।

3. शतावरी- यह भी एक प्रचलित औषधि है। देहातों में प्रायः इसे माता के स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए दिया जाता है। इसका पेड़ भी बहुत दूध वाला होता है। इस वृक्ष की छाल ही प्रयोग में लाई जाती है। जिस किसी व्यक्ति को तृतीय भाव में बुध अशुभ स्थिति में दुःख दे रहा हो अथवा भाई बंधुओं को पीड़ा पहुँच रही हो या हर समय कोई भय सताता हो तो इस वनौषधि का प्रयोग करना चाहिए।

4. ब्रीह- ब्रीह का तात्पर्य धान से होता है। इसे अंग्रेजी में पैडी कहते हैं। किन्तु जब इसे बुध ग्रह के लिए औषधि के रूप में प्रयोग करना हो तो इसकी भूसी ही प्रयुक्त होती है। चतुर्थ भाव में बुध सर्वथा अशक्त होता हैं। चाहे किसी की कुंडली में बुध यदि चौथे भाव में हो तथा सुख सम्पदा का क्षय होता हो, माता एवं मामा को दुःख कष्ट एवं हानि होती हो तब इसका प्रयोग करें।

5. नीह- यह एक जलीय पौधा है। इसे कहीं-कहीं सीवार भी कहा जाता है। यह जल के अन्दर डूबा रहता है। इसके ऊपर काई की परत चढ़ जाती है। इसका रंग मटमैला हरा होता है। यह गंदे पोखरों या तालाब में ज्यादा पाया जाता है। ज्यादा गहरे पानी में नहीं होता है। यह ज्यादातर किनारे ही पाया जाता है। कुंडली में यदि बुध पाँचवें भाव में पीड़ित हो। संतान न होती हो, पढ़ाई में बाधा आती हो तो इसका प्रयोग करें।

6. शिखरोदयी- देहाती भाषा में इसे बंझा कहते हैं। यह किसी भी पेड़ में हो सकता है। प्रायः किसी भी वृक्ष की कोई शाखा विकृत हो जाती है। उसके पत्तों का आकार-प्रकार बदल जाता है। पत्ते प्रायः ऐंठ जाते हैं। उस डाल में न तो फल लगता है न पत्ते ही सही होते हैं। एक तरह से वह शाखा बाँझ हो जाती है। छठे भाव में बुध की अशुभ स्थिति के निवारण हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।

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7. स्वज- इसे सूज या सावज भी कहा जाता है। यह बबूल की वह प्रजाति है। जिसमें न तो फूल लगते हैं और न ही किसी तरह के फल। किन्तु काँटे बहुत ही नुकीले, घने एवं बहुत भयंकर खुजली उत्पन्न करने वाले होते हैं। किन्तु यहाँ जब इसका औषधीय प्रयोग होता है तो इसकी छाल ही प्रयुक्त होती है। पति-पत्नी में अनबन, वैधव्य दोष, व्यावसायिक असफलता एवं वैवाहिक विचलन में इसका प्रयोग होता है।

8. बीड- नदी, पोखर अथवा तालाबों में अपने आप उगा हुआ धान बीड कहा जाता है। इसकी फली जब पक जाती है। तब इसके दाने अपने आप झड़ जाते हैं तथा अगले साल फिर अपने आप यह उग आता है। औषधीय प्रयोग के लिए इसका पानी में डूबा हुआ हिस्सा ही प्रयोग में लाते हैं। शारंगधर संहिता में इसका प्रयोग कुष्ठ निवारण में बहुत ही उपयुक्त बताया गया है। आठवें भाव का अशुभ बुध यदि चोट-चपेट अथवा दुर्घटनाकारक हो या कुंडली में अल्पायु योग हो तो इसका प्रयोग किया जाता है।

9. उम्बर- इसे शुद्ध रूप में उदुम्बर या औदुम्बर कहते हैं। सीधे अथवा देहाती भाषा में इसे गूलर कहते हैं। औषधीय प्रयोग में इसका दूध ही प्रयुक्त होता है। यदि किसी की कुंडली में भाग्य भाव में बुध अशुभ प्रभाव दिखाता हो। भाग्य साथ नहीं देता हो अथवा धर्म-कर्म में रुचि न हो तो उसकी शान्ति के लिए इस वनौषधि का प्रयोग किया जाता है।

10. उपस्थ- देहात में इसे तिलैया कहते हैं। प्रायः यह साग-सब्जी वाले खेतों में ज्यादा पाई जाती है। किन्तु विज्रम्भ ऋषि के मतानुसार इसका मूल स्थान नील नदी का तट अर्थात मिश्र देश में है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। इसकी फली मटर के समान होती है। किन्तु इसका कोई भी हिस्सा खाने के काम में नहीं आता है। यहाँ तक कि इसे पशु भी नहीं खाते हैं। यदि बुध के कारण किसी का कुंडली में दशम भाव अशुभ हो। नौकरी या प्रतियोगिता में सफलता नही मिलती हो। पैतृक सम्पत्ति का नाश होता हो तो इसका प्रयोग करते हैं।

11. ऐत- यह एक लता है। यह पान के समान होता है। कालिदास ने अपनी रचना शाकुंतलम्‌ में बताया है कि इसके सुन्दर पत्तों से शकुंतला अपने बालों का श्रृंगार किया करती थी। इसकी सुगंध बहुत उत्तम एवं उत्कृष्ट होती है। सूख जाने पर भी इसके पत्तों का रंग नहीं बदलता है। लाभ भाव में अशुभ बुध की स्थिति के निवारण हेतु इसका प्रयोग करते हैं।

12. इतिस‌- यह भी एक लता है। यह बहुत ही बदबूदार बताई गई है। कहा गया है कि इसका प्रयोग राक्षस एवं जादूगर किया करते थे। हाथ से स्पर्श करते ही इसमें से लसलसा पदार्थ निकलना प्रारम्भ हो जाता है। इसमें चिपक कर कीड़े अपनी जान दे देते हैं। अतः इसके पत्तों को बहुत सावधानी से किसी सूखी लकड़ी की सहायता से ही तोड़ते हैं। बारहवें भाव में बुध की अशुभ स्थिति टालने के लिए यह प्रयुक्त होता है।

उपरोक्त समस्त औषधियों का विवरण क्रौंचकेतु, बिल्वसाधन, पल्लवसंग्रह एवं शारंगधर संहिता में विस्तृत रूप से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ एक विवरण पाराशर ऋषि कृत उनकी संहिता में भी देखा जा सकता है। बुधग्रह प्रधान देश कम्बोडिया में इनका प्रयोग निःसंकोच एवं निर्बाध रूप से आज भी किया जाता है।

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