बृहस्पति

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बृहस्पति धनु और मीन राशि के स्वामी हैं। इनकी महादशा सोलह वर्ष की होती है। बृहस्पति एक-एक राशि पर एक-एक वर्ष रहते हैं। वक्रगति होने पर इसमें अंतर आ जाता है। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा हैं।

बृहस्पति ग्रह का स्वरू प
देवगुरु बृहस्पति पीत वर्ण के हैं।
इनके सिर पर स्वर्णमुकुट तथा गले में सुंदर माला है।
बृहस्पति का आयुध सुवर्णनिर्मित दंड है।
बृहस्पति पीत वस्त्र धारण करते हैं तथा कमल के आसन पर विराजमान हैं।
इनका वाहन स्वर्णनिर्मित रथ है।
इनके रथ में पीले रंग के आठ घोड़े जुते रहते हैं।
इनके चार हाथों में दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र और वरमुद्रा सुशोभित है।

बृहस्पति ग्रह के बारे मे ं
महाभारत आदिपर्व के अनुसार बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। बृहस्पति अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ-भाग प्राप्त करा देते हैं। रक्षोघ्न मंत्रों का प्रयोग कर बृहस्पति असुरों से देवताओं की रक्षा करते हैं। बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ में जाकर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें देवगुरु का पद तथा ग्रहत्व प्राप्त करने का वर दिया।

देवगुरु बृहस्पति की पहली पत्नी शुभा से सात कन्याएँ उत्पन्न हुईं- भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महासती, महष्मती, सिनीवाली और हविष्मती।
देवगुरु बृहस्पति की दूसरी पत्नी तारा से सात पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। इनकी तीसरी पत्नी ममता से भरद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए।

बृहस्पति ग्रह की विशेषता
ऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति अत्यंत सुंदर हैं। इनका आवास स्वर्णनिर्मित है। ये विश्व के लिए वरणीय हैं। बृहस्पति अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें संपत्ति तथा बुद्धि से संपन्न कर देते हैं, उन्हें सन्मार्ग पर चलाते हैं और विपत्तियों में उनकी रक्षा भी करते हैं। शरणागत वत्सलता का गुण इनमें कूट-कूटकर भरा हुआ है।

बृहस्पति ग्रह की शांति कैसे करे ं
बृहस्पति की शांति के लिए प्रत्येक अमावस्या तथा बृहस्पति को व्रत करना चाहिए। पीला पुखराज धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को दान में पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घृत, पीला अन्न, पुखराज, अश्व, पुस्तक, मधु, लवण, शर्करा, भूमि तथा छत्र देना चाहिए।

बृहस्पति उपासना मंत् र
बृहस्पति की उपासना के लिए निम्न में से किसी एक अथवा सभी का श्रद्धानुसार नित्य निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। जप का समय संध्याकाल तथा जप संख्या 19000 है।

वैदिक मंत्र-
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्‌॥

पौराणिक मंत्र-
देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचसंनिभम्‌।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्‌॥

बीज मंत्र-
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।

सामान्य मंत्र-
ॐ बृं बृहस्पतये नमः।

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