राहु का द्वादश भावों में फल

दशम भाव में लाभ देता है राहु

पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे
NDND
प्रत्येक जातक की कुंडली में ग्रह स्थान (भाव) अनुसार जातक को फल देते हैं एवं विजय, यश, सम्मान, कीर्ति के साथ अपयश, अपव्यय, विनाशकारी बुद्धि, कीर्ति का ह्रास इस प्रकार दोनों तरह के फल देते हैं। यह सब निर्भर करता है ग्रह जातक की लग्न कुंडली में किस भाव में बैठा है।

जानिए राहु के अलग-अलग भाव में फल

प्रथम भाव (लग्न) - राहु यदि जातक की कुंडली में प्रथम भाव में बैठा हो तो जातक को दुष्ट, मस्तिष्क रोग, स्वार्थी एवं राजद्वेषी के साथ नीच कर्म करने वाला, दुर्बल एवं कामी बनाता है।

द्वितीय भाव : राहु जातक की कुंडली में द्वितीय भाव में बैठा हो तो जातक परदेश जाकर कमाता है। अल्प संतति, कुटुंबहीन के साथ भाषा कठोर रहती है, धन का कम आगमन होता है (अल्प धनवान) परंतु संग्रह करने की आदत जातक में रहती है।

तृतीय भाव : राहु जातक की कुंडली में तृतीय भाव में हो तो योगाभ्यासी, विवेक को बनाए रखने वाला, प्रवासी, पराक्रम शून्य, अरिष्टनाशक के साथ बलवान, विद्वान एवं अच्छा व्यवसायी होता है।

चतुर्थ भाव : शुद्ध जातक की कुंडली में राहु चतुर्थ भाव में रहने पर वह असंतोषी, दुःखी, क्रूर एवं मिथ्‍याचारी (झूठ पर चलने वाला), कम बोलने वाला बनाता है। इसी के साथ पेट की बीमारी बनी रहती है एवं माता को कष्ट रहता है।

पंचम भाव : राहु जातक की कुंडली में रहने पर भाग्यशाली बनाता है। शास्त्र को समझने वाला रहता है परंतु इसी के साथ मति मंद रहती है (मतिमंद), धनहीन एवं कुटुंब का धन समाप्त करने वाला निकलता है।

षष्ठम भाव : जातक की कुंडली में राहु षष्ठम भाव में रहता है तो जातक निरोगी, पराक्रमी एवं बड़े-बड़े कार्य करने वाला रहता है। अरिष्ट निवारक के साथ शत्रुहन्ता एवं कमर दर्द से पीड़ित रहता है।

सप्तम भाव : जातक की कुंडली में राहु सप्तम भाव में हो तो व्यापार में जातक को हानि, वात रोग होता है, दुष्कर्म की प्रेरणा, चतुर के साथ लोभी एवं दुराचारी बनाता है। सबसे ज्यादा प्रभाव गृहस्थ पर पड़ता है। स्त्री कष्ट अथवा स्त्री नाशक बनाता है।

अष्टम भाव : जातक की कुंडली में अष्टम भाव में राहु जातक को हष्ट-पुष्ट बनाता है। गुप्त रोगी होता है, व्यर्थ भाषण करने वाला, मूर्ख के साथ-साथ क्रोधी, उदर रोगी एवं कामी होता है।

नवम भाव : जातक की कुंडली में राहु नवम भाव में हो तो जातक को तीर्थयात्रा करने वाला एवं धर्मात्मा बनाता है, परंतु इसी के विपरीत परिणाम भी देता है। प्रवासी, वात रोगी, व्यर्थ परिश्रमी के साथ दुष्ट प्रवृत्ति का बनाता है।

दशम भाव : जातक की कुंडली में राहु दशम भाव में जातक को लाभ देता है। कार्य सफल कराने के साथ व्यवसाय कराता है परंतु मंद गति, लाभहीन अल्प संतति, अरिष्टनाशक भी बनाता है।

एकादश भाव : जातक की कुंडली में राहु ग्यारहवें भाव में अनियमित कार्यकर्ता, मितव्ययी, अच्छा वक्ता बनाता है। इसी के साथ आलसी, क्लेशी एवं चंद्रमा से युक्ति हो तो राजयोग दिलाता है।

द्वादश भाव : जातक की कुंडली में राहु द्वादश भाव में हो तो चिंताशील एवं विवेकहीन बनाता है। परिश्रमी, सेवक के साथ जातक कामी होता है। मूर्ख जैसा व्यवहार करता है।

Show comments

ज़रूर पढ़ें

नर्मदा जयंती कब है, जानिए माता की पूजा का शुभ मुहूर्त और नदी का महत्व

2 या 3 फरवरी कब मनाई जाएगी बसंत पंचमी, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और भोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शपथ ग्रहण कुंडली से जानें उनकी सरकार का भविष्य, चलेगी या जाएगी

माघ गुप्त नवरात्रि पर जानें महत्व, विधि और 10 खास बातें

वसंत पंचमी पर क्या बनाते हैं?

सभी देखें

नवीनतम

Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

भगवान गणेश को समर्पित शुभ तिथि है विनायक चतुर्थी, पढ़ें महत्व, पूजा विधि और कथा

Aaj Ka Rashifal: 01 फरवरी माह का पहला दिन, जानें क्या कहते हैं 12 राशियों के सितारे

01 फरवरी 2025 : आपका जन्मदिन

01 फरवरी 2025, शनिवार के शुभ मुहूर्त