नवग्रह मंडल में राहु का प्रतीक वायव्यकोण में काला ध्वज है। राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। राहु के अधिदेवता काल तथा प्रत्यधिदेवता सूर्य हैं।
राहु का स्वरू प * राहु का मुख भयंकर है। * ये सिर पर मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर काले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। * इनके हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल और वरमुद्रा है। * राहु सिंह के आसन पर विराजमान हैं। ध्यान में ऐसे ही राहु प्रशस्त माने गए हैं।
राहु के ग्रह बनने का कार ण राहु की माता का नाम सिंहिका है, जो विप्रचित्ति की पत्नी तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री थी। माता के नाम से राहु को सैंहिकेय भी कहा जाता है। राहु के सौ और भाई थे, जिनमें राहु सबसे बड़ा था।
समुद्रमंथन के बाद जिस समय भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु देवताओं का वेष बनाकर उनके बीच में आ बैठा और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया। परंतु तत्क्षण चंद्रमा और सूर्य ने उसकी असलियत बता दी।
अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान ने अपने तीक्ष्ण धारवाले सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु कहलाया और धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। परंतु अमृत का संसर्ग होने से वह अमर हो गया फलस्वरूप ब्रह्माजी ने उसे ग्रह बना दिया। तभी से अन्य ग्रहों के साथ राहु भी ब्रह्मा की सभा में बैठता है।
राहु की विशेषत ा * राहु ग्रह मंडलाकार होता है। पृथ्वी की छाया भी मंडलाकार होती है अतः राहु इसी छाया का भ्रमण करता है। यह छाया का अधिष्ठातृ देवता है। * असूया (सिंहिका) पुत्र राहु जब सूर्य और चंद्रमा को तम से आच्छन्न कर लेता है, तब इतना अँधेरा छा जाता है कि लोग अपने स्थान को भी नहीं पहचान पाते। * ग्रह बनने के बाद भी राहु वैर-भाव से पूर्णिमा को चंद्रमा और अमावस्या को सूर्य पर आक्रमण करता है। इसे ग्रहण या राहु पराग कहते हैं। * मत्स्यपुराण के अनुसार राहु का रथ अंधकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाए हुए काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं।
* अपवादस्वरूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर यह क्लेशकारी ही सिद्ध होता है। * ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि कुंडली में राहु की स्थिति प्रतिकूल या अशुभ है तो यह अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न करता है। * राहु कार्यसिद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाला तथा दुर्घटनाओं का जनक माना जाता है।
राहु ग्रह शांति उपा य * राहु की शांति के लिए मृत्युंजय-जप करना चाहिए। * पिरोजा धारण करना भी श्रेयस्कर है। * राहु ग्रह की शांति के लिए अभ्रक, लोहा, तिल, नीला वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कम्बल, घोड़ा तथा खड्ग का दान करना चाहिए।
राहु ग्रह उपासना मंत् र राहु ग्रह की उपासना के लिए निम्न में से किसी एक मंत्र अथवा सभी का निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिए। जप का समय रात्रि में तथा कुल जप संख्या 18000 है।
वैदिक मंत्र- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कयाशश्चिष्ठया वृता॥
पौराणिक मंत्र- अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्यविमर्दनम्। सिहिंकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥