भारतीय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ईश्वरीय शक्ति की उपासना अलग-अलग रूपों में की जाती है। हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवताओं को उपास्य देव माना गया है व विभिन्न शक्तियों के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
आजकल परेशानियों, कठिनाइयों के चलते हम ग्रह शांति के उपायों के रूप में कई देवी-देवताओं की आराधना, मंत्र जाप एक साथ करते जाते हैं। परिणाम यह होता है कि किसी भी देवता को प्रसन्न नहीं कर पाते- जैसा कि कहा गया है -
' एकै साधै सब सधै, सब साधै सब जाय'
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जन्मकुंडली के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के इष्ट देवी या देवता निश्चित होते हैं। यदि उन्हें जान लिया जाए तो कितने भी प्रतिकूल ग्रह हो, आसानी से उनके दुष्प्रभावों से रक्षा की जा सकती है। इष्ट देवता का निर्धारण कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव को देखकर किया जाता है। जैसे यदि प्रथम भाव में मेष राशि हो तो (1 अंक) तो लग्न मेष माना जाएगा।
लग्नानुसार इष्ट देव
लग्न स्वामी ग्रह इष्ट देव मेष, वृश्चिक मंगल हनुमान जी, राम जी वृषभ, तुला शुक्र दुर्गा जी मिथुन, कन्या बुध गणेश जी, विष्णु कर्क चंद्र शिव जी सिंह सूर्य गायत्री, हनुमान जी धनु, मीन गुरु विष्णु जी (सभी रूप), लक्ष्मी जी मकर, कुंभ शनि हनुमान जी, शिव जी
लग्न के अतिरिक्त पंचम व नवम भाव के स्वामी ग्रहों के अनुसार देवी-देवताओं का ध्यान पूजन भी सुख-सौहार्द्र बढ़ाने वाला होता है। इष्ट देव की पूजा करने के साथ रोज एक या दो माला मंत्र जाप करना चमत्कारिक फल दे सकता है और आपकी संकटों से रक्षा कर सकता है।
देव मंत्र हनुमान ऊँ हं हनुमंताय नम: शिव ऊँ रुद्राय नम: गणेश ऊँ गंगणपतयै नम: दुर्गा ऊँ दुं दुर्गाय नम: राम ऊँ रां रामाय नम: विष्णु विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ लक्ष्मी लक्ष्मी चालीसा ऊँ श्रीं श्रीयै नम:
विशेष : इष्ट का ध्यान-जप का समय निश्चित होना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह सात बजे जप ध्यान करते हैं, तो रोज उसी समय ध्यान करें। अपनी सुविधानुसार समय न बदलें।