छाया ग्रह केतु : पढ़ें 10 विशेष बातें

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1 . समुद्रमंथन के समय छल से अमृतपान करने के कारण भगवान विष्णु के चक्र से कटने पर सिर राहु तथा धड़ केतु कहलाया। 
2. ब्रह्मा जी ने सिर को एक सर्प के शरीर से जोड़ दिया यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के सिर के जोड़ दिया जो केतु कहलाया।
 
3. राहु के साथ ही केतु भी ग्रह बन गया। पुराणों के अनुसार केतु बहुत से हैं। जिनमें धूमकेतु प्रधान है। यह छाया ग्रह है। 
 
4. व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ यह समस्त सृष्टि को भी प्रभावित करता है। 
 
5. कुछ विद्वानों के मतानुसार यह राहु की अपेक्षा सौम्य होता है और विशेष परिस्थितियों में यह व्यक्ति को यश के शिखर पर पहुंचा देता है। इसका मंडल ध्वजाकार माना जाता है। 
 
6. इसका वर्ण धुुएं के समान है तथा मुख विकृत है। 
 
7. इनके दो हाथ हैं। एक हाथ में गदा तथा दूसरा वरमुद्रा धारण किए रहते हैं। 
 
8  .इसका वाहन गिद्ध है। कहीं-कहीं इन्हें कपोत पर आसीन भी दिखाया जाता है। 
 
9. केतु की महादशा सात साल की होती है। किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ स्थान पर रहने पर यह अनिष्टकारी हो जाता है। ऐसे केतु का प्रभाव व्यक्ति को रोगी बना देता है। 
 
10. केतु का सामान्य मंत्र : ॐ कें केतवे नम: है। इसका नित्य एक निश्चित संख्या में श्रद्धापूर्वक जाप करना चाहिए। जाप का समय रात्रि-काल है।
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