कब देते हैं ग्रह शुभ या अशुभ फल...

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- आचार्य संजय
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ज्योतिष शास्त्र का नियम है कि विभिन्न लग्न, दशा अथवा योग के सम्मिलित अध्ययन से ही किसी भी जातक की कुंडली का फल बनता है। किसी भी ग्रह के शुभ-अशुभ फलों का पता करने के लिए ज्योतिष में कई बातों का ध्यान रखा जाना पड़ता है।

चन्द्र लग्नं शरीरं स्यात्, लग्नस्यात् प्राण संज्ञकम।
ते उभे शंपरीक्ष्यैव सर्व नाड़ी फलं स्मृतम।

अर्थात् चंद्र लग्न शरीर है और लग्न प्राण, इन दोनों का सम्मिलित विचार करके ही कुंडली का फल करना चाहिए। ध्यान रहे कोई भी ग्रह अपना शुभ अथवा अशुभ फल अपनी महादशा में देते हैं।

शुभ फल प्रदान करने वाले योग...


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महादशा व अंतर्दशा के ग्रह मित्र होकर एक-दूसरे के भावों में जिसे ग्रहों का 'राशि परिवर्तन योग' कहते हैं, होंगे तो अत्यंत शुभ फलदायक होंगे।

अशुभ फल प्रदान करने वाले योग...


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महादशा व अंतर्दशा के ग्रह एक-दूसरे के शत्रु होंगे तो अशुभ फल की प्राप्ति होगी। किसी भी ग्रह का उच्च का होकर वक्री होना उसकी शुभता में न्यूनता लाता है। ग्रह का वक्री होकर उच्च होना अशुभता का सूचक है।

कौन से दशा होती है अधिक बलवान...




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महादशा से अंतर्दशा का स्वामी ज्यादा बलवान होता है। अत: अंतर्दशा का स्वामी शुभ हुआ और महादशा के ग्रह मित्र हुआ तो अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

यदि महादशा का स्वामी ग्रह महादशा का शत्रु हुआ और दोनों ग्रह एक-दूसरे से तृतीय, षष्ठम अष्टम अथवा द्वादश हुए तो महाअशुभ फलों की प्राप्ति समझनी चाहिए ।

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