जब हो सूर्य तृतीयस्थ

करें माता-पिता से सद्व्यवहार

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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सूर्य का तृतीय भाव में होना पराक्रम में वृद्धि करता है वहीं शत्रुओं का भी नाश करता है। तृतीय भाव भाई, साझेदारी, स्वर का भी माना गया है। इस भाव में अकेला सूर्य हो तो भाई से सहयोग दिलाता है व साझेदारी के मामलों में भी सफल रहता है।

ऐसे जातक के शत्रु नहीं होते। ऐसा जातक धनी, दीर्घायु होता है। इस भाव में सूर्य व नीच का मंगल हो तो भाइयों को नहीं होने देता और यदि किसी कारण हो भी तो सहयोग नहीं करते। ऐसा जातक साझेदारी के मामलों में भी नुकसान उठाता है।

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मंगल उच्च का सूर्य के साथ होने पर भाई-बन्धुओं से लाभ दिलाता है। यदि शनि सूर्य साथ हो तो भाइयों से विद्रोह कराता है। बुध साथ होने पर स्वप्रयत्नों से व्यापार में सफलता दिलाता है। गुरु के साथ सूर्य का होना शुभ फलदाई होगा।

ऐसा जातक अपने भाइयों, साझेदारों से भी लाभ पाता है। राहु साथ हो तो प्रबल रूप से शत्रुओं पर भारी पड़ता है, लेकिन तृतीय में होने से उसको भाई दोष भी लगता है। ऐसे जातकों के भाई की अकाल मृत्यु होने से बनता है।

सूर्य के साथ केतु हो तो पताका की तरह उसका वर्चस्व फहराता है। अशुभ होने से ऐसे जातक को माता-पिता की सेवा करना चाहिए व मामा की भी सहायता करता रहे। मद्यपान व बुरी आदतों से भी बचे। रोज प्रातः सूर्य को अर्घ्य दे।
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