जन्म कुंडली में छठा भाव, रोग व शत्रु का माना गया है। अत: ग्रह यदि निर्बल होकर षष्ठ स्थान में बैठते हैं तो अपने कारकत्व के अनुसार कष्ट देते हैं।
यदि उन पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो कष्ट कम और पाप प्रभाव हो तो रोग असाध्य एवं अधिक कष्टकारक होता है। विभिन्न ग्रह षष्ठ भाव में बैठकर निम्न प्रकार के रोगकारक हो जाते हैं।
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