नवग्रहों की पौराणिक सुंदर प्रार्थना, पढ़ें अर्थ सहित

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नवग्रहों को एक साथ प्रसन्न करना थोड़ा मुश्किल है। आप अपनी कुंडली के कमजोर ग्रहों को पहले प्रसन्न कीजिए। प्रस्तुत है वेदों में वर्णित नवग्रह प्रार्थना। ग्रहों के नाम-मंत्रों से बनी यह प्रार्थना तुरंत असरकारी और चमत्कारी है- 


 
सूर्यदेव-
 
पद्मासन: पद्मकरो द्विबाहु:
पद्मद्युति: सप्ततुरङ्गवाह:।
दिवाकरो लोकगुरु: किरीटी
मयि प्रसादं विदधातु देव।।
 
हे सूर्यदेव! आप रक्तकमल के आसन पर विराजमान रहते हैं, आपके दो हाथ हैं तथा आप दोनों हाथों में रक्तकमल लिए रहते हैं। रक्तकमल के समान आपकी आभा है। आपके वाहन-रथ में सात घोड़े हैं, आप दिन में प्रकाश फैलाने वाले हैं। लोकों के गुरु हैं तथा मुकुट धारण किए हुए हैं, आप प्रसन्न होकर मुझ पर अनुग्रह करें।
 
चन्द्रमा-
 
श्वेताम्बर: श्वेतविभूषणश्च
श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु:।
चन्द्रोऽमृतात्मा वरद: किरीटी
श्रेयांसि मह्यं विदधातु देव।।
 
हे चन्द्रदेव! आप श्वेत वस्त्र तथा श्वेत आभूषण धारण करने वाले हैं। आपके शरीर की कांति श्वेत है। आप दंड धारण करते हैं, आपके दो हाथ हैं, आप अमृतात्मा हैं, वरदान देने वाले हैं तथा मुकुट धारण करते हैं, आप मुझे कल्याण प्रदान करें।
 
मंगल-
 
रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी
चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।
धरासुत: शक्तिधरश्च शूली
सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
 
जो रक्त वस्त्र धारण करने वाले, रक्त विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, मेष वाहन, गदा धारण करने वाले, पृथ्‍वी के पुत्र, शक्ति तथा शूल धारण करने वाले हैं, वे मंगल मेरे लिए सदा वरदायी और शांत हों।
 
बुध-
 
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दण्डधरश्च हारी।
चर्मासिधृक् सोमसुत: सदा मे
सिंहाधिरूढो वरदो बुधश्च।।
 
जो पीत वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, दंड धारण करने वाले, माला धारण करने वाले, ढाल तथा तलवार धारण करने वाले और सिंहासन पर विराजमान रहने वाले हैं, वे चंद्रमा के पुत्र बुध मेरे लिए सदा वरदायी हों।
 
बृहस्पति-
 
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो देवगुरु: प्रशान्त:।
दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च
तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्।।
 
जो पीला वस्त्र धारण करने वाले, पीत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, अत्यंत शांत स्वभाव वाले हैं तथा जो दंड, कमण्डलु एवं अक्षमाला धारण करते हैं, वे देवगुरु बृहस्पति मेरे लिए वर प्रदान करने वाले हों।
 
 
शुक्र-
 
श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी
चतुर्भुजो दैत्यगुरु: प्रशान्त:।
तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च
जयञ्च बिभ्रद्वरदोऽस्तु मह्मम्।।
 
जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, श्वेत विग्रह वाले, मुकुट धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वरूप, अक्षसूत्र तथा जयमुद्रा धारण करने वाले हैं, वे देत्यगुरु शुक्राचार्य मेरे लिए वरदायी हों।
 
शनिदेव-
 
नीलद्युति: शूलधर: किरीटी
गृध्रस्‍थितस्त्राणकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्तो
वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी।।
 
जो नीली आभा वाले, शूल धारण करने वाले, मुकुट धारण करने वाले, गृध्र पर विराजमान, रक्षा करने वाले, धनुष को धारण करने वाले, चार भुजा वाले, शांत स्वभाव एवं मंद गति वाले हैं, वे सूर्यपुत्र शनि मेरे लिए वर देने वाले हों।
 
राहु- 
 
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी
करालवक्त्र: करवालशूली।
चतुर्भुजश्चर्मधरश्च राहु:
सिंहासनस्थो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
 
नीला वस्त्र धारण करने वाले, नीले विग्रह वाले, मुकुटधारी, विकराल मुख वाले, हाथ में ढाल-तलवार तथा शूल धारण करने वाले एवं सिंहासन पर विराजमान राहु मेरे लिए वरदायी हों।
 
केतु-
 
धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत्
गृध्रासनस्थो विकृताननश्च।
किरीटकेयूरविभूषिताङ्ग
सदास्तु मे केतुगण: प्रशान्त:।।
 
धुएं के समान आभा वाले, दो हाथ वाले, गदा धारण करने वाले, गृध्र के आसन पर स्‍थित रहने वाले, भयंकर मुख वाले, मुकुट एवं बाजूबन्द से सुशोभित अंगों वाले तथा शांत स्वभाव वाले केतुगण मेरे लिए सदा वर प्रदान करने वाले हों।

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